tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post6090689083691983500..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: एक बार फिर ...प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-35497431832975234702017-05-11T09:14:09.851-07:002017-05-11T09:14:09.851-07:00मुझे सहसा ही मीराबाई और स्वामी विवेकानंद वाला प्रक...मुझे सहसा ही मीराबाई और स्वामी विवेकानंद वाला प्रकरण स्मरण हो रहा है जहाँ एक वेश्या, जिसे पतित स्त्री कहकर स्वामीजी ने उपेक्षित किया था , सूर का यह भजन गा रही है " मेरे अवगुण चित्त न धरो....'। वृन्दावन के गोस्वामीजी मीरा माँ को स्त्री कहकर दर्शन नहीं देते , तब मीरा यह कहतीं हुईं पलट आतीं हैं कि "आज ही जाना श्रीकृष्ण के अतिरिक्त और भी कोई पुरुष अवतरित हुआ है"।<br /><br /><br /><br />संसार की माया ही विचित्र है, कोई बच ही नहीं सकता। हमने अनेकों वर्ग बना रखें हैं। सच ही कहा आपने, कृष्ण ही की भांति कर्मयोगी होना है सबको।<br /><br />आभार आलेख हेतु! :"""-)<br /><br />Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-76855646007397047502017-04-04T22:55:23.041-07:002017-04-04T22:55:23.041-07:00खूबसूरत अभिव्यक्ति ....खूबसूरत अभिव्यक्ति ....Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-38087987118862327752017-03-22T07:32:42.566-07:002017-03-22T07:32:42.566-07:00मैं द्वेष भाव की बात नहीं कह रही ,केवल उनकी ओर ध्य...मैं द्वेष भाव की बात नहीं कह रही ,केवल उनकी ओर ध्यान न जाने की बात कह रही हूँ क्योंकि बाद में उन्होंने स्त्रियों को स्वीकृति दी थी .तुलना नहीं है धर्म की व्याप्ति अधिकतम हो ,विषम स्थितियों से जूझ सके और समय के साथ वृद्धि प्राप्त कर के ,इसलिये पुनर्विचार या व्याख्या कीबात कर रही हूँ.प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-62390220492733100872017-03-22T03:32:06.791-07:002017-03-22T03:32:06.791-07:00विचारणीय आलेख. मुझे लगता है स्त्रियों के प्रति किस...विचारणीय आलेख. मुझे लगता है स्त्रियों के प्रति किसी तरह का द्वेष भाव नहीं था बुद्ध में, हो ही नहीं सकता, जो कहते हैं, जब तक अंतिम प्राणी भी मुक्त नहीं हो जायेगा वह स्वर्ग के द्वार पर ही खड़े रहेंगे, यशोधरा को त्याग कर जाने के पीछे स्त्री को कमतर आंकने का भाव नहीं हो सकता, बुद्ध अपने पिता को भी तो उसी तरह बिना बताये चले गये. मुझे तो लगता है बुद्ध पुरुषों की तुलना करना उसी तरह उचित नहीं है जैसे किन्हीं भी दो व्यक्तियों में तुलना करना, चाहे वे स्त्री हों या पुरुष. Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-63241493536711384372017-03-21T05:09:59.787-07:002017-03-21T05:09:59.787-07:00आपने कितना सटीक कहा कि कर्ममय संसार में वांछित न्य...आपने कितना सटीक कहा कि कर्ममय संसार में वांछित न्याय कोई कर्मशील कृष्णा ही दे सकता है.. <br /><br />बहुत सुन्दर तरीके से आपने जो विवेचना की है, उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए, वो कम है. Rahul...https://www.blogger.com/profile/11381636418176834327noreply@blogger.com