tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post4821827803498031446..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: शक्ति और अभिव्यक्तिप्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-39510458993856448712016-10-02T02:17:53.231-07:002016-10-02T02:17:53.231-07:00बिना " शक्ति " के कैसा पौरुष .. और मातृश...बिना " शक्ति " के कैसा पौरुष .. और मातृशक्ति के बिना तो पुरुष का दैहिक अस्तित्व ही संभव नही !!<br /><br />बहुत ही सुंदर ! आपकी रचनाओं को पढ़ने का एक अलग ही आनंद है !<br /><br />कृपया अभिनंदन स्वीकार करें !Chandra Prakashhttps://www.blogger.com/profile/13504715677716395957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-71729210113245540512011-02-09T11:34:14.544-08:002011-02-09T11:34:14.544-08:00फिर विचार उठता है केवल मन-भावन रूप ही रम्य क्यों ?...फिर विचार उठता है केवल मन-भावन रूप ही रम्य क्यों ? वे विकराल रूप जिन्हें वह परम चेतना आवश्यकतानुसार धारण करती है ,क्या कम महत्व के हैं<br /><br />हम..जी सही कह रहे हैं आप....:) हालाँकि मुझे भी तूफ़ान की गर्जना और बिजलियों से दर तो नहीं ही लगता..मगर उतने साहस से आगे आकर उनका आनंद भी नहीं लेती कभी..बीच की स्थिति है थोड़ी...:(<br /><br />'वीभत्स को कुत्सित समझने स्थान पर उसमें छिपी विकृतियों के मूल तक जा सके '<br /><br />ये तो यहाँ कभी हो ही नहीं सकता..:/...हो भी जायेगा तो बस धर्म के लिए.......आज की तारिख में अगर एक व्यक्ति हमारे लिए परम पूज्यनीय है....अगले दिन उसे एड्स हो जाये...तो लोग उससे ऐसे पीछा छुडायेंगे की पूछिए मत...सारा प्यार धरा रह जायेगा.....:/ <br />veebhats के mool tak jaane की राह ही नहीं dekhte लोग तो kya khaaq जायेंगे wahan tak...........मैंने बहुत itihaas padha है....kisi भी yug से udarahan liya जाए.....jitna meeche के tabke waale लोग kaam karte हैं..utna ही unhe क्षीण और ghranit samjha jata है.......dekha jaaye ऐसे तो humein उनका aabhari ही hona चाहिए...मगर aisa नहीं है.....हम्म..vishay ये नहीं है aapka...jaanti hoon..मगर ramneek को ramy और veebhats को kutsit kehne wali baat aayi तो rok नहीं पायी ये kehne से....:(<br /><br /><br />'यही है नारीत्व की चिर-कामना कि उसके आगे .समर्पित हो जो मुझसे बढ़ कर हो । इसी मे नारीत्व की सार्थकता है और इसी में भावी सृष्टि के पूर्णतर होने की योजना'<br /><br />:) waah! matlab main भी shai sochti hoon...हम्म मगर mera aadhar doosra है..mera manna है aadmi कभी apne अहम् से आगे badhkar नहीं soch sakte...so aham का takraav na हो..iske लिए zaroori है...aapka jeewansathi aapse shresth ही हो !<br /><br /><br />'उन्हें बचाने शिव दौड़ कर नहीं आते । स्वयं निराकरण करने में समर्थ है -वह साक्षात् शक्ति है '<br /><br />rom रोम pulkit हो utha ये sunakr...vastav में yahi ansh maa paarwati का striyaan pehchaan ही नहीं paatin......:(...sada ही annpoorna wala bhaav un par haavi rehta है......fir bhale ही patidev daitya से kam na hon.....वो shakti swaroopa हो ही नहीं paatin..:/<br /><br /><br />'माँ ,आविर्भूत होओ हमारे जीवन में ,करुणा बन बस जाओ हृदय में, शक्ति स्वरूपे, समा जाओ मेरे तन-मन में ..'<br /><br />:) kshama...मगर यहाँ par main vyaktigat taur par maa से केवल और केवल shakti roop में ही mere मन में basne के लिए prarthna karungi......:)<br />-----------<br /><br />आप प्रतिभा जी...मैं क्या कहूं.....ऐसा लगता है..मैं बहुत सारी बातें कह लेतीं हूँ...आपसे या अपने आपसे.....किससे... वो ज़रूरी नहीं........मगर एकाकीपन बहुत हद तक आपका ब्लॉग दूर कर रहा है मेरा.....इतना सारा सोचने को विचारने को मिल जाता है..कुछ और नहीं सोच पाती....:)<br /><br />बहुत शुक्रिया आपका......बहुत सारा शुक्रिया......:) !<br /><br />प्रणाम !Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.com