tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post3167108831144976915..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: कृष्ण-सखी - 4.प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-15788125038176032402011-03-16T02:57:55.436-07:002011-03-16T02:57:55.436-07:00महाभारत बीतने के बाद समझा था कृष्णा ने कि उसके वरण...महाभारत बीतने के बाद समझा था कृष्णा ने कि उसके वरण का पहला अधिकार कर्ण को था ,कुन्ती पुत्र के रूप में भी और स्वयंवर के प्रतिभागी के रूप में भी .दोनों बार वही छला गया .निरंतर अपमान के दंश उसे प्रतिशोधी बना गये .<br /><br />कितना अस्थिर कर जाता है कर्ण का उल्लेख !<br /><br />मन को समझता है केवल यह सखा .<br /><br />कितना विस्तार है आपकी सोच में ...कृष्ण और द्रौपदी संवाद बहुत तुष्ट कर रहा है ..आभारसंगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-2867137306000597482011-02-20T23:09:20.340-08:002011-02-20T23:09:20.340-08:00सखाभाव से की गई वार्ता, क्या कुछ, संभवतः सबकुछ साम...सखाभाव से की गई वार्ता, क्या कुछ, संभवतः सबकुछ सामने ले आती है।<br />मित्रों के मध्य रखे गए कटु सत्य भी विश्लेषण लगते हैं, आक्षेप नहीं।<br />कृष्ण-कृष्णा के मध्य की वार्ता, पांचाली का अंतर्द्वंद आपके कुशल शब्दों में जानना अच्छा लगा।<br /><br />और जो बात द्रौपदी से न कह सके कृष्ण, उस पर, उस स्थिति पर व्यवहारित कुशलता पर, मूक हूँ, प्रसन्न हूँ।<br />केशव, कर्ण के बारे में बिना पूर्वाग्रह के क्या सोचते आए हैं, इसको सूक्ष्मता से वर्णित करने के लिए आभार व्यक्त करना चाहूँगा।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-26202285946734928042011-02-20T09:53:28.280-08:002011-02-20T09:53:28.280-08:00'कैसी -कैसी बातें कितना तटस्थ हो कर कह जाता है...'कैसी -कैसी बातें कितना तटस्थ हो कर कह जाता है यह .और मैं लाचार सुनती हूँ .कोई उत्तर नहीं होता मेरे पास . लगने लगता है मैं स्वयं को भी उतना नहीं जानती जितना यह जानता है .मैं उससे हार जाती हूँ .'<br /><br />कितना अजीब है ना प्रतिभा जी....श्रीकृष्ण के सम्मुख होते हुए भी द्रौपदी का अंतर्द्वंद जारी ही है....उनके इतने समझाने पर भी उसे शांति नहीं.....आपकी पोस्ट पढने के बाद यही सोच रहीं हूँ......द्रौपदी के जीवन से बड़े बड़े संकट और मन के अंतर्द्वंद आम इंसान भी झेलते ही होंगे.....बिना किसी कृष्ण के......हाँ उनके नाम के सहारे ज़रूर चलते हैं मगर फिर भी.....जब द्रौपदी के रु-ब-रु होते हुए भी कृष्ण को इतना सारा कहना पड़ रहा है.....तो क्या वे इंसान द्रौपदी से भी ज़्यादा हिम्मतवाले कहलाये जायेंगे..?? बहुत असमंजस वाली मन:स्थिति हो रही है....:( शायद फिर से ये पोस्ट पढ़ना पड़ेगा किसी और मूड में.....अभी तो मन कहीं और ही भटक गया...:)<br /><br />बहुत आभार...आपके अनुभव से बहुत सीखने को मिलता है...लेखन के लिए भी पर उससे कहीं ज़्यादा मनन और चिंतन के बाद मेरे हाथ जो आपके अनुभव और ज्ञान की एक दो बूँदें आतीं हैं....वही पूँजी है अपनी तो .. :)<br /><br />(विशेष आभार कर्ण वाले हिस्से के लिए.....कर्ण के लिए जी बहुत जलता आया है हमेशा से..आपके आज के मतलब इस पोस्ट के शब्दों ने जैसे उस पर सर्द फाहे रख दिए....)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-29288951352018890892011-02-19T23:26:22.190-08:002011-02-19T23:26:22.190-08:00पांचाली और कृष्ण के वाद-संवादों ने अत्यन्त मनोवैज्...पांचाली और कृष्ण के वाद-संवादों ने अत्यन्त मनोवैज्ञानिकता से<br />मन के सूक्ष्मातिसूक्ष्म मनोभावों को उकेरा है,जो शंकाओं का समाधान तो करते ही हैं,जिज्ञासाओं को भी शान्त करते हैं।<br />प्रतिभा जी की अद्भुत कल्पना-शक्ति,अर्थ-वैचित्र्य और भाव-गांभीर्य<br />पाठक के मन को इस तरह भावविभोर कर देता है कि वह देर तक<br />उसी में डूबा रह जाता है।तदर्थ आभार!!शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-22537321765771688822011-02-17T21:51:44.784-08:002011-02-17T21:51:44.784-08:00कृपया शीर्षक को ठीक करें ....कृपया शीर्षक को ठीक करें ....Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-47328913793877468232011-02-17T21:50:19.094-08:002011-02-17T21:50:19.094-08:00कमाल की कल्पना शक्ति और शब्द सामर्थ्य पायी है आपने...कमाल की कल्पना शक्ति और शब्द सामर्थ्य पायी है आपने ! शुभकामनायें आपको!Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-4680228127389105132011-02-17T20:17:00.172-08:002011-02-17T20:17:00.172-08:00बिलकुल सही कहा। समझ तो कई बार शायद पहले भी आ जाता ...बिलकुल सही कहा। समझ तो कई बार शायद पहले भी आ जाता है मगर हम अपनी कामनाओं के चलते शायद उसे अन्सुना कर देते हैं द्रोपदी की तरह। कहानी के भावनात्मक पहलूयों को शायद पहली बार किसी ने अन्दर तक छूआ है। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com