tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post2417685586223055353..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: कृष्ण-सखी - 47 & 48.प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-40802637539751775642012-07-15T01:33:54.438-07:002012-07-15T01:33:54.438-07:00अद्भुत! बर्बरीक मेरा प्रिय पात्र रहा है।
और राधेय ...अद्भुत! बर्बरीक मेरा प्रिय पात्र रहा है।<br />और राधेय तो! मैं बस नत ही हो सकता हूँ।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-79058886401774608752012-07-12T05:13:02.806-07:002012-07-12T05:13:02.806-07:00आपने महाभारत के कर्ण के साथ आज पूरा न्याय कर दिया ...आपने महाभारत के कर्ण के साथ आज पूरा न्याय कर दिया है, जो आपके वश में हो सकता था...अपने शब्दों, भावों और विचारों से..। जो कुछ अपूर्ण रह गया था...आपने भर दिया है। <br /><br />पर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कर्ण के साथ न्याय होना अभी बाकी है...और, अगर किसी अन्य ने वह नहीं किया तो फिर मैं अवश्य करूंगा। मेरा संकल्प है यह...सृजन शिल्पीhttp://srijanshilpi.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-15580735444219231392012-07-08T11:02:00.336-07:002012-07-08T11:02:00.336-07:00कितना अधिक विवश है मनुष्य!..नियति कैसे कैसे खेल रच...कितना अधिक विवश है मनुष्य!..नियति कैसे कैसे खेल रचती है..पात्र हम ही होते हैं...बुद्धि विवेक से किसी भी प्रकार का निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र और समर्थ होते हैं..और जब सब कुछ बीत जाता है...उसके बाद भी कितना कहने, सुनने और पछताने को शेष रहता है न हमारी झोली में सिवाय समय के। अंत तक आते आते नेत्र भीग चुके हैं..कर्ण के लिए सौ प्रतिशत उमड़ने वाला मन आज ये भी सोच रहा है..कि सत्य से अवगत होने के बाद अर्जुन की दशा क्या रही होगी?जब तक एक ही दिशा में सोचती थी..कम पीड़ा होती थी किसी के भी लिए...आपको पढ़ने के बाद दृष्टिकोण एकदम बदल गए हैं..सबके लिए सब कुछ सोचने लगी हूँ।पहले केवल माता कुन्ती पर दोषारोपण करके मन शांत कर लेती थी...आज भी क्रोध आया...मन किया लिख दूँ कि 'माता कुन्ती मैं आपसे कट्टी हूँ सदा के लिए'...:( पर थोड़ी ही देर में शांत होकर अर्जुन के लिए विचार किया..उसके बाद श्रीकृष्ण और फिर नियति ने मन को घेर लिया।उसके बाद फिर वही हमेशा का प्रश्न और प्रश्नों की श्रृंखला..कि जाने किस व्यवस्था के अधीन हैं हमारे प्राण, हमारी मृत्यु,हमें चेतना देने वाला तत्व,हमारा अंत:करण...क्यूँ मोह है..क्यूँ माया है..इन सबका औचित्य क्या ...? हम प्रश्न करें या न करें किन्तु कर्म तो हर परिस्थिति में करना ही है प्राणी को..इसे ही सर्वोपरि मान कर अपनी बात समाप्त करती हूँ।<br />(जब शुरू शुरू में पांचाली पढ़ रही थी तो अंत जानने की तीव्रतम जिज्ञासा होती थी..अधीर मन चैन ही नहीं लेने देता था .अब लगता है अंत हो ही नहीं कभी...अंत के साथ ही मैं कितनी रिक्त हो जाऊँगी न ..:(...)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-46037471156474144182012-07-04T09:19:47.004-07:002012-07-04T09:19:47.004-07:00धन्यवाद अनामिका,इतने मनोयोग से पढ़ने और त्रुटि की ...धन्यवाद अनामिका,इतने मनोयोग से पढ़ने और त्रुटि की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिये - ज़रा सी असावधानी और कंप्यू़टर महाराज की करनी -सुधार दी है .प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-51137004491478807732012-07-03T21:55:14.389-07:002012-07-03T21:55:14.389-07:00deri se pahunchne k liye kshama yachak hun.
thode...deri se pahunchne k liye kshama yachak hun.<br /><br />thode din pahle hi jaan payi thi barbareek ke bare me aur yahan aapke lekh ne meri jankari ko aur adhik vistar diya iske liye aabhari hun. lekin maine hidimba madir ke jankari dene wale board par likha hua padha tha jisme likha tha ki barbareek sada hi harne wale ka sath dete the.<br /><br />bahut uddat roop se har charitr ko ukera hai aapne.Bahut kuchh gyaan prapt ho raha hai apke pryason se. aabhar.<br /><br /><br />नहीं, मैं नहीं क्षमा कर सकता अपने अप्पको, हमें नहीं चाहिए विजय,नहीं चाहिए राज्य, कुछ नहीं चाहिए जो इतने क्रूर अन्याय से प्राप्त हो....<br /><br />yah prasang do baar aa gaya hai.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-83284553657689986142012-07-01T23:07:18.171-07:002012-07-01T23:07:18.171-07:00कुन्ती एवं पांचाली का मनोव्यथाजनित पश्चात्ताप कर्ण...कुन्ती एवं पांचाली का मनोव्यथाजनित पश्चात्ताप कर्ण के चरित्र को<br />अधिक उदात्त बनाता है,साथ ही उसकी मृत्यु को अधिक करुण एवं मार्मिक भी।बर्बरीक की उद्भावना सार्थक है,जिसने नीरक्षीरविवेक सदृश विजय-पराजय को दर्पण दिखा दिया है।आद्योपान्त कथा का निर्वाह अत्यन्त सार्थक,सजीव,सशक्त एवं प्रभावी है, जो मन में गहरी कचोटन की अनुभूति कराता है।शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-72347765514663001302012-06-27T01:25:03.148-07:002012-06-27T01:25:03.148-07:00सत्य या तो समय पर उद्घाटित किया जाये,अथवा कभी नहीं...सत्य या तो समय पर उद्घाटित किया जाये,अथवा कभी नहीं.कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-88281163296299460232012-06-25T23:22:54.490-07:002012-06-25T23:22:54.490-07:00निसंदेह प्रभावित करती सुंदर श्रंखला ,, ,,,,,
RECE...निसंदेह प्रभावित करती सुंदर श्रंखला ,, ,,,,,<br /><br />RECENT POST,,,,,<a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2012/06/blog-post_23.html#comment-form" rel="nofollow">काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-64652901726112507412012-06-25T23:07:50.223-07:002012-06-25T23:07:50.223-07:00द्रौपदी के मन की थाह कौन जान पाया है ..... कर्ण का...द्रौपदी के मन की थाह कौन जान पाया है ..... कर्ण का प्रसंग बहुत मार्मिक ....संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-42419619554023241662012-06-25T23:04:46.400-07:002012-06-25T23:04:46.400-07:00इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-40526275527840034422012-06-25T20:04:36.235-07:002012-06-25T20:04:36.235-07:00उत्कृष्टता बरकरार है |
सतत आभार है ||उत्कृष्टता बरकरार है |<br />सतत आभार है ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.com