tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post2139361236649201899..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: एक थी तरु - 18. & 19 .प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-16707932734675494932011-06-07T12:28:46.789-07:002011-06-07T12:28:46.789-07:00अपने प्रोफेशन की वजह से या बच्चों से मुझे बहुत ज़्...अपने प्रोफेशन की वजह से या बच्चों से मुझे बहुत ज़्यादा लगाव नहीं उस वजह से.....जो भी कारण रहा हो....मगर पूरी पोस्ट में मेरे दिमाग पर प्रसव पीड़ा का जीवंत चित्रण छाया रहा..मैं तो बहुत ज्यादा प्रभावित हुई...'दत्ता' हमारी text बुक थी...उसकी कई चीज़ें अनायास ही याद आती गयीं.....वेदना के चरम को बहुत बहुत ही शानदार सांचे में ढाला है ....<br /><br />हालांकि, <br />एक लड़की का ममता तक का सफ़र, एक माँ और शिशु का बंधन और मातृत्व की गरिमा प्राप्त कर लेने के बाद जीवनसाथी के लिए पत्नी के विचार.....ये तीनों बातें भी बेहद प्रभावी लगीं........कई जगह संवादों ने मन मोह लिया....<br />साथ ही बार बार मन में शिद्दत से बात उभरती रही....क्या हर बात पर तरु को असित से स्वयं की तुलना करना ज़रूरी है?..हम्म संभवत: ये उसके मन की गहन चिंतन की आवाज़ बस रही होगी.... यद्यपि पोस्ट की अंतिम पंक्ति पर मैं सबसे ज़्यादा प्रसन्न हुई...पोस्ट के समापन के दौरान तरु के चिंतन मनन की गूँज हृदय तक पहुँचती है........वाक़ई.....ये ऐसा ही है..बहुत सटीक और सारगर्भित विश्लेषण है प्रतिभा जी.......काफी खूबसूरत बन पड़ा है आखिरी का हिस्सा...उन स्त्रियों के लिए तो बहुत ही सुंदर रहेगा इसको पढ़ने का अनुभव....जो मातृत्व पा चुकीं हैं...या इस दौर से गुज़र रहीं हैं....<br /><br />पराये दुःख वाली बात भी अपनी जगह सही लगी....खुद के ज़ाती ग़म को कम या ज़्यादा करने में परपीड़ा का अपना विशेष स्थान हुआ करता है.....निर्णायक होती है कभी कभार दूसरों की व्यथा....<br /><br />खैर.......Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-18195032796485615662011-05-25T05:24:06.603-07:002011-05-25T05:24:06.603-07:00मुग्ध हुआ, पढता जा रहा हूँ।
तरल की मनःस्थिति का, ...मुग्ध हुआ, पढता जा रहा हूँ। <br />तरल की मनःस्थिति का, असित से उसके संवाद का, परिस्थितियों का विवरण भीतर तक उतरता है।Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-60384024432983216082011-05-23T10:18:27.605-07:002011-05-23T10:18:27.605-07:00अतीत से जुड़ा तरु का खिन्न मन माँ बनकर गौरवान्वित ...अतीत से जुड़ा तरु का खिन्न मन माँ बनकर गौरवान्वित अनुभव करता है।प्रसव-वर्णन सजीव सा है। माँ की अभिनव अनुभूतियाँ उसके मन को वात्सल्य भाव में रंग देती हैं-पिता यहीं पीछे रह जाता है।तरु और असित का वाद-संवाद और सोच का चित्रण मनोवैज्ञानिक है।कथा का विकास प्रवाहपूर्ण और मनोरम है,जिसमें मन डूब सा जाता है।शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-80271143635224426782011-05-23T00:41:03.285-07:002011-05-23T00:41:03.285-07:00बहुत सुन्दर कहानी । असित जैसा जीवन साथी तो खुशनसीब...बहुत सुन्दर कहानी । असित जैसा जीवन साथी तो खुशनसीबों को ही मिलता है। अपने खून से रचकर , एक स्त्री वास्तव में अपने साथी को इस मामले में काफी पीछे `छोड़ देती है ।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.com