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रात के दस बजकर अट्ठावन मिनट हो चुके हैं ,मुझे उत्सुकता है यह जानने की, कि इस घड़ी में अंकों का रूप एकदम से कैसे बदल जाता है .
हुआ यह कि बेटे ने मेरे मुझसे पूछा ,'आपके बेडरूम में प्रोजेक्शन-क्लाक लगा दूँ?'
'वह क्या होती है ?
बेड पर लेटे-लेटे देख सकती हैं कितने बजे हैं.ऊपर छत पर टाइम रिफ़्लेक्ट होता रहेगा .जब चाहें आधी आँख खोली और देख लिया.'
'नहीं मुझे नहीं चाहिये फ़ालतू की चीज़ें, मैं मज़े से खुद देख लेती हूँ.'
'अरे वाह, सुविधा है तो आराम उठाइये,' और उसने लाइट लगा कर कनेक्ट कर दी.
हल्का अँधेरा होते ही कमरे की छतपर ए एम ,पी एम सहित समय के अंक उभऱ आते हैं.
सच में है तो मज़ेदार चीज़.समय देखने को हिलना भी नहीं पड़ता.
पलक झपकते संख्या कैसे बदल जाती है,पता ही नहीं लगता. बड़ा विस्मय होता है मुझे.
फिर मैंने निश्चय कर लिया आज देख कर ही रहूँगी.
उत्सुकता यह है कि तत्क्षण बदलाव कैसे हो जाता है- अंक का भाग इधर से उधऱ खिसकता है या दूसरा अंक एकदम प्रकट होता है.
इस समय रात के दस अट्ठावन हो चुके हैं.लो,इधऱ मैं बोलती रही उधर उनसठ हो गये. बस, अब देखकर ही रहूँगी. पलक भी नहीं झपकना, लगातार देखे जाना है .
सावधान हूँ पूरी तरह, कहीं चूक न जाऊँ. नहीं झपकूंगी,बिल्कुल नहीं.आज देख कर ही रहूँगी उनसठ के साठ एकदम कैसे हो जाते हैं . बराबर देख रही हूँ ,दृष्टि वहीं टिकी है.
जबरन आँखें खोले हूँ .उफ्फ़, अभी तक नहीं हुए .एक मिनट कितना लंबा हो रहा है .खोले हूँ आँखें बिलकुल नहीं झपने दीं.
अरे, ये क्या हो गया? . उनसठ के दो ज़ीरो रह गए , साठ हुए बिना - दस के ग्यारह हो गए. . मेरी सारी मेहनत बेकार!
अब समझ गई हूँ कि उनसठ के साठ कोई घड़ी नहीं करेगी ,मामला उनसठ पर ही रुक जाएगा ,परिणाम में मिलेंगे केवल दो शून्य.
ओह, मेरी भी अक्ल घास चरने चली गई थी क्या !
-
- प्रतिभा सक्सेना.
रात के दस बजकर अट्ठावन मिनट हो चुके हैं ,मुझे उत्सुकता है यह जानने की, कि इस घड़ी में अंकों का रूप एकदम से कैसे बदल जाता है .
हुआ यह कि बेटे ने मेरे मुझसे पूछा ,'आपके बेडरूम में प्रोजेक्शन-क्लाक लगा दूँ?'
'वह क्या होती है ?
बेड पर लेटे-लेटे देख सकती हैं कितने बजे हैं.ऊपर छत पर टाइम रिफ़्लेक्ट होता रहेगा .जब चाहें आधी आँख खोली और देख लिया.'
'नहीं मुझे नहीं चाहिये फ़ालतू की चीज़ें, मैं मज़े से खुद देख लेती हूँ.'
'अरे वाह, सुविधा है तो आराम उठाइये,' और उसने लाइट लगा कर कनेक्ट कर दी.
हल्का अँधेरा होते ही कमरे की छतपर ए एम ,पी एम सहित समय के अंक उभऱ आते हैं.
सच में है तो मज़ेदार चीज़.समय देखने को हिलना भी नहीं पड़ता.
पलक झपकते संख्या कैसे बदल जाती है,पता ही नहीं लगता. बड़ा विस्मय होता है मुझे.
फिर मैंने निश्चय कर लिया आज देख कर ही रहूँगी.
उत्सुकता यह है कि तत्क्षण बदलाव कैसे हो जाता है- अंक का भाग इधर से उधऱ खिसकता है या दूसरा अंक एकदम प्रकट होता है.
इस समय रात के दस अट्ठावन हो चुके हैं.लो,इधऱ मैं बोलती रही उधर उनसठ हो गये. बस, अब देखकर ही रहूँगी. पलक भी नहीं झपकना, लगातार देखे जाना है .
सावधान हूँ पूरी तरह, कहीं चूक न जाऊँ. नहीं झपकूंगी,बिल्कुल नहीं.आज देख कर ही रहूँगी उनसठ के साठ एकदम कैसे हो जाते हैं . बराबर देख रही हूँ ,दृष्टि वहीं टिकी है.
जबरन आँखें खोले हूँ .उफ्फ़, अभी तक नहीं हुए .एक मिनट कितना लंबा हो रहा है .खोले हूँ आँखें बिलकुल नहीं झपने दीं.
अरे, ये क्या हो गया? . उनसठ के दो ज़ीरो रह गए , साठ हुए बिना - दस के ग्यारह हो गए. . मेरी सारी मेहनत बेकार!
अब समझ गई हूँ कि उनसठ के साठ कोई घड़ी नहीं करेगी ,मामला उनसठ पर ही रुक जाएगा ,परिणाम में मिलेंगे केवल दो शून्य.
ओह, मेरी भी अक्ल घास चरने चली गई थी क्या !
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- प्रतिभा सक्सेना.