सोमवार, 22 सितंबर 2014

कथांश - 20 .

 ' एक क्षण का भी स्वतंत्र अस्तित्व  होता है ,आज समझ पाया हूँ उसका  महत्व, उसकी सार्थकता . कुछ बीते हुए पलों की तृप्ति मन को छाँह दे गयी है .शब्दों में अपार शक्ति है , देख  लिया मैंने .कुछ शब्द मनःतपन पर शीतल प्रलेप धर गए , अंतर की उद्विग्नता कुछ  शान्त हुई , अंतर्विषाद विश्राम पा गया. आता-जाता रहेगा जानता हूँ पर वह उतना दारुण  नहीं.
लेकिन अपने को बहुत अकेला अनुभव करने लगा हूँ !
मन की बातें कहना चाहता हूँ . काग़ज़ों से ही सही . तभी लिखने बैठा हूँ   , लेखनी हाथ  आई तो अनायास लिख गया  - पारमिता.
मन में झाँका .कुछ उमड़ रहा है जिसे व्यक्त करना  है .अपनी ही   असलियत पहचानने को लिख रहा हूँ , अपने ही लिए . तुम्हें भेजूँगा नहीं  किसी का नाम ऊपर होने से लिखा हुआ चिट्ठी नहीं बन  जाता .मेरा अपने निज से वार्तालाप है यह ,तुम जाने कहाँ से बीच में आ जाती हो.
 यों चाहता भी हूँ  किसी रूप में तुम्हारा मन मेरा आभास  पा ले .विचार और इच्छाएँ सूक्ष्म होती हैं जैसे हवा ,यहाँ से वहाँ पहुँचते बाधा नहीं  उन्हें . कैसे भी ,किसी रूप में भास  जाएँगी तुम्हें.लिख रहा हूँ इसीलिए ,मेरे मन में जो है उससे अविदित नहीं रहोगी तुम.
यों इतना भी गांधी जी नहीं कि अपनी हर कमी उघाड़ता चलूँ .जानता हूँ डीसेंसी भी कोई चीज़ है !अपनी सारी  कमज़ोरियाँ  तुम्हें कैसे बता सकता हूँ ? अंततः पुरुष हूँ ,तुमसे जब मिलूँ सिर उठा कर ,थोड़ा बड़प्पन बना  रहे मेरा !
ये कुछ पन्ने ,जो केवल मेरे हैं - अपने से अपनी बात !
तुम्हें समझता हूँ, उतरा चेहरा याद कर मन  कसकता है .कमी मुझमें रही -पर जैसा  हूँ ,विवश हूँ  .तुम्हारे साथ वही बना रहूँ , अंत तक उसी रूप में - स्वाभाविक सहज!
जानता हूँ, कभी-कभी तुम मन ही मन  मेरे ऊपर हँसी हो .सामने -सामने नहीं ,कभी नहीं .मेरी कमज़ोरियाँ जानती हो तुम . उद्घाटित नहीं करती  दबा  जाती हो, यह  सोच कर कि मुझे कैसा  लगेगा.

औरों का सोचती हो तुम .मुझसे अपना सोचे बिना नहीं रहा जाता .ओ,पारमिता ....'
डोर-बेल बजी , बाहर कोई है - कलम रख दी मैंने .

माँ की चिट्ठी आई है -  साधारण कुशल के बाद लिखा है - 
रमन बाबू के साथ विनय के  माता-पिता  हमारे घर आए थे ,वो सब यहाँ आने पर बताऊँगी . बाकी हाल लिखने के बाद अंत में जोड़ा था.'तुम्हें पता है मुन्ना ,पिछले दिनों एक बार मीता ने मुझसे कहा था -'वसु की चिन्ता न करना माँ ,मेरी बहिन है .मैं देखूँगी उसके लिए . पूरा कर दिया उसने अपना कहा. मैं तो उसकी  ऋणी हो गई,  कैसे चुकाऊंगी ?'
कुछ समझ में नहीं आया .दोनो बातों में क्या ताल-मेल ?
अब जाने पर ही पता लगेगा.
*
बड़ी  रुचिपूर्वक माँ ने वर्णन किया था .
बहुत दिनों बाद ,उस दिन सुबह वसु गाने की प्रेक्टिस करने बैठी थी.
उसकी आदत है ,कमरे  के दरवाज़े उड़का लेती है और फिर चारों ओर का भान नहीं रहता उसे .
 सुर निकाल कर गाने में लीन हो गई थी -
'प्रभू जी मेरे औगुन चित न धरो.'
बाहर की कुंड़ी खटकती रही ,उसे कहाँ सुनाई दे !
माँ ने पहले एकाध  बार टाला, शायद उठ जाये .फिर हार कर गईँ खोलने .देख कर तो एकदम चौंक गईँ ,न कोई  सूचना न ख़बर और रमन बाबू अपने समधी-समधिन सहित हाज़िर !
 'अरे, आइये,आइये '

अंदर आते-आते संगीत के स्वर कानों में पड़े -
' सम- दरसी है नाम तिहारो  ,चाहो तो पार करो ..'
कैसा गहरा भाव ,कैसा  स्वर -अंतर की गहराइयों तक  उतरा  जा रहा हो जैसे !  चारों जन एकदम चुप .
रमन बाबू  ही बोले ,'बिटिया गा रही है .'
'बड़ी बुरी आदत है .ऐसी डूब  जाती है गाने में कि दीन-दुनिया का होश नहीं रहता. अब देखिये न, मैं रसोई में थी ,सोच रही थी अब उठेगी अब उठेगी ,खोल देगी.पर कहाँ सुनाई दे उन्हें .आपको इत्ती देर खड़ा रहना पड़ा .'
'ये तो सरस्वती का वरदान है उसे .'
पत्नी बोलीं ,'कितना मधुर और गहरे उतरने वाला संगीत !'
'आज कल सिनेमा के गानों से कहाँ छुट्टी मिलती है लड़कियों को ,और यह ऐसा  पावन संगीत - मन प्रसन्न हो गया  !'
उन लोगों को बैठा  कर वे उधर गईं, उसे चेताने .
पर उसे  देख कर चुप न रह सकीं , 'उफ़फोह ,ये लड़की ..! कहाँ का पुराना घिसा सलवार-सूट चढ़ाये बैठी है, क्या कहेगा कोई ... ?'
 साथ-साथ चली आई समधिन -पीछे खड़ी थीं.
बोलीं  ,'कोई दिखावा नहीं उसमें ,ऊपरी बनावट से क्या होता ?वह सहज-सरल अपने आप में पूरी !'
माँ क्या कहतीं ,चुप हो गईँ . 
वसु ,सकपका कर खड़ी हो गई ,'आंटी जी ,नमस्ते ! अरे,मैंने देखा  नहीं ..'.'
''कोई बात नहीं , परेशान मत हो .अपना टाइम लो सुविधा से आना .'
अपनी वेष-भूषा पर कांशस हो गई थी वह,चुन्नी समेटती दूसरे कमरे में चली गई.

उधर से  राय साब की पुकार आई -

'जिज्जी, ख़ातिरदारी बाद में कर लेना.अभी ज़रा हमारे पास बैठ लीजिये .'
फिर बोले ,'  ये रमन बाबू और भाभीजी आपसे कुछ कहना चाहते हैं.'
'ऐसा क्या है, आज्ञा दीजिए समधी जी .'
'समधिन कहें या जिज्जी ?'
फिर बोले ,'क्या फ़र्क पड़ता है,मन में सम्मान भाव होना चाहिये .'
'बैठिए न आप .ये बताइये हमलोग आपको कैसे लगे ?'
'ये भी कोई पूछने की बात है समधी जी ?ऐसा घर-वर तो बड़े भाग से मिलता है , .'
'आपसे एक प्रार्थना है ,'उन्होंने अपनी पत्नी को इशारा किया और
पीछे की एक कुर्सी आगे खींच दी ,आगे  आ बैठी समधिन कह रही थीं,
' ...मैंने एक बार बहू से पूछा  ,'ये सब बातें कहाँ से सीखीं ,तुम्हारे तो माँ नहीं थीं? पता है उसने क्या कहा -
उसके शब्द थे जन्मदात्री माँ नहीं थीं ,पर एक माँ मुझे मिली थीं, जिनका प्यार और सँवार पाई .उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला.'

फिर उन्होंने जोड़ा ,'आपने ख़ूब सँभाल लिया ,माँ की कमी नहीं रहने दी.'
'मुझे शुरू से ही वह अपनी लगी '
'सच है, अपना समझे बिना कोई इतना नहीं कर सकता .'
रमन बाबू बोले,'अपनी बात कहो न !'
'...समधिन हों ,तो भी मेरी जीजी ही हैं आप ,वैसे दोनों ही रिश्ते अच्छे हैं... '

'जो आपको भाए .मैं सब में खुश .'
'विनय तो आपका हो गया .हमारे छोटे बेटे तनय को आपने देखा है?'
हाँ ,खूब ! हमारे घर भी आए थे तनय बाबू पिछली बार . लग ही नहीं रहा था कहीं बाहर के हैं ,मुन्ना से तो उनकी खूब जम गई थी ..'
'उसके लिए भी ऐसी ही लड़की चाहिये .' रमन बाबू बोल रहे थे.
'अरे , लड़कियों  की आपको क्या कमी ?इशारा मिले ,दौड़ के आयेंगे लोग ,ऐसे संबंध के लिए .'
'तो फिर आप ही अपनी छोटी बिटिया को उसके लिए ..'
माँ आँखें फाड़ कर देखती रह गईँ !

'आपकी बिटिया को कब से अपनी बेटी मान रहा हूँ . अब आज्ञा दें तो  अपने घर बाकायदा बिदा करा के ले जाऊँ  !...तनय है न हमारा ?'
माँ बिलकुल अवाक् -सच है या सपना ?
'क्या हुआ जिज्जी ?'
'ऐसा सौभाग्य हमारा !अरे ,तर गये  हम तो ..पर आपने तनय बाबू से पूछा ?"
'उसी की इच्छा से आगे बढ़े हैं.'
पता लगा, खूब पटती है  देवर-भाभी में . वहाँ पहले ही सलाह हो गई है .यहाँ तो अब आये हैं .'

सब बता कर माँ ने कहा था  'मीता का यह ऋण कैसे उतार पाऊंगी ?
'कोई ऋण-विण नहीं ,' मैंने तुरंत कहा ,'कॉलेज में चार साल उसकी निगरानी की है .कैसे-कैसे बचाया है सब जानती है वह .'
दाहिना हाथ अनायास बाएं कंधे पर चला गया ,अभी तक कभी-कभी टीसने लगता है.

*
बाद में मैंने पूछा था ,'वसु को भी मंज़ूर है ?'
''अरे, उसे काहे नहीं होगा? भरा घर ,इतना अच्छा लड़का ..'
फिर भी एक बार पूछ तो लो .'
ये माँ के बस का नहीं ,जानता था. मैंने ही बात शुरू की
' तेरी दीदी ठीक हैं वहाँ ?
'हाँ भइया ,उनने पॉली टेक्नीक में एप्लाई भी कर दिया है .'
'अच्छा!'
'हाँ ,बाबूजी ,माँ ,मतलब उनके बाबूजी- माँ,सास-ससुर तैयार हैं. वे चाहें सर्विस करें चाहें  कुछ और ... .वे लोग बहुत अच्छे हैं .'

'और सब लोग तो ठीक हैं. ये तनय ज़रा गड़बड़ है उनके घर में '
वह चौंकी ,'क्या ?'
'बड़ा झगड़ू लगता है .'.
वह कुछ बोली नहीं .
'उसका उजड्डपन मुझे पसंद नहीं ..'
' वैसे तो नहीं होगा . शादी-ब्याह में लोग हो जाते हैं..' .
'उससे तो तेरी  नहीं पट सकती , तू बता- मना कर दूँ ?'
खिसिया कर बोली ,'मुझे नहीं पता !'
'कितना लड़ा था तुझसे शादी में .नहीं,नहीं उसे तो दूर से नमस्ते  ..'
' ये सब मुझ से क्यों कह रहे हो ?माँ देखो ... ..'
'क्यों परेशान कर रहा है उसे ?
'.तो तू ने 'हाँ' कर दी  उसके लिए ?'
'मैंने कुछ नहीं कहा.. .'
मन ही मन हँसी आ रही है पर जानबूझ कर छेड़े जा रहा हूँ .
'तो ठीक  ,वह नहीं  कोई और ढूँढ़ूगा ..'
'मुझे नहीं करनी किसी से '
'तनय से भी नहीं न ?'
'मैं नहीं जानती .माँ , देखो न फ़ालतू में .'
वे भी हँस रहीं थीं .
'अरे, क्यों उसके पीछे पड़ा है  ?'
 बाद में  माँ को आश्वस्त किया था मैंने ,'बहन की शादी ठाठ से करूँगा .
कोई ये न कहे कि ...' पर आगे  नहीं बोल पाया.
माँ  समझ गईँ थीं .
हम दोनों चुप हो गए थे फिर .
*
वसु चली जाएगी ,माँ का उनका मन  कच्चा हो रहा है .क्या लग रहा है समझ रहा हूँ एक वही तो थी मैं चला जाता हूँ ,वे बिलकुल अकेली .उस दिन कहने लगीं,'औऱ मैं हमेशा क्या-क्या सोचती कर घबराती रही. जहाँ कोई मुश्किल आई ,अपने आप उसका हल निकलता रहा वह हमारे लिए हमेशा भाग्यशाली रही  मैं उलटा उसी पर खीजती थी. मैने कभी उसकी कदर नहीं की. रहा   .हुई थी तो मेरी नौकरी लग गई .

उनकी आँखों मे आँसू छलक आये
और मैं हमेशा डाँटती -टोकती रही ,कभी सुख नहीं दे सकी अपनी बेटी को .
माँ ,तुमने हमेशा ठीक किया .मैं तो खुश रही हमेशा .पर अब तो तुम बच्ची बनी जा रही हो .लगता है तुम्हारा ध्यान रखना पड़ेगा .'
'तू तो हमेशा से ही ,सहती आई है ,पछतावा तो मुझे रहेगा .'
'पछतावा क्यों रहे,'मैं एकदम बोला ,'ऐसा करो अभी शादी की तारीख आगे बढ़वा देना.पहले उसकी कदर कर अपना मन भर लो  ब्याह तो फिर भी हो जायेगा..' 

 कई बार ऐसी बातें सुन कर  कुछ खीझ-सा गया था .बहुत ज़रूरी था उनका ध्यान हटाना  नहीं तो वे यही सोच-सोच कर दुखी होती रहेंगी.
'आगे कभी टालने की बात मत करना,मुन्ना शुभ- शुभ बोल बेटा .अडंगे की बात भी नहीं करते !'

माँ बहुत प्रसन्न थीं ,संतुष्ट कहूँ तो ग़लत नहीं होगा . बहुत बड़ी चिन्ता दूर हुई थी उनकी और हाँ ,मेरी भी . 
माँ  ने कहा था ,' बहिन का संबंध तय हो रहा है. पहल उनकी ओर से हुई है , तुम्हें उनके घर हो आना चाहिये .दीवाली आ रही है ,अच्छा मौका है .मिठाई ले कर चले जाओ .'
'ठीक है एक दिन को चला जाऊँगा .'
गया था उनके घर . उसके सास-ससुर के पाँव छुये थे ,बाबू जी कहा था उन्हें .
विनय से गपशप होती रही थी -पर अनचाहे ही एक गड़बड़ हो गई . कह  नहीं सकता किसी से -  मन बड़ा अव्यवस्थित हो रहा है .
*
(क्रमशः)

बुधवार, 10 सितंबर 2014

कथांश - 18. & 19.

18.
विवाह जैसे पारिवारिक समारोहों में सम्मिलित होने का अवसर ,वसु को पहली बार मिल रहा था.आगत संबंधियों की समवयस्का लड़कियों में घुलने -मिलने का रोमांच उसके लिए सुखद अनुभव था . 
आगत जनों में सहज उत्सुकता थी  -इनसे हमारी  क्या रिश्तेदारी है ?
राय साब ने स्पष्ट कर दिया , 'मेरी बड़ी बहिन हैं. दीदी के साथ में , और बाद में  तो पूरा ,सब इन्हीं ने सँभाला है .'
उनके घर की महिलाओं  के बीच और बरात के समय भी  ,माँ ने वसु को पूरी निगरानी में रखा.

उसे आँखों तले रखने की कोशिश करती थीं .उन्हें लगता था  महिलाओं में कोई  उससे फ़ालतू बातें न पूछने लगे -बाप के बिना बेटी कितनी निरीह हो जाती है माँ जानतीं थीं .
पिता के आकाश और प्रकाश तले  बेटी सहजमना विकसती है , उसकी छाया में निश्चिन्त साँस लेती है .
वसु को वह सुरक्षा कहाँ मिली ,कहीं एक कसक रही होगी उसके मन में!
मुझे याद है एक बार अकेले में , कुछ झिझकते हुए उसने  मुझसे  कहा था ,' मैंने पिता जी के कभी नहीं देखा .भइया ,एक बार उनसे मिलना चाहती हूँ .'
'कोशिश करूँगा...' मैंने कहा था .क्या पता कभी हो भी पायेगा या नहीं!
*
'कितना सुन्दर गाती है आपकी बेटी, ' एक रिश्तेदार महिला ने माँ से कहा था,' रतजगे में इसे यहीं रहने दीजिये न .'
वसु ने बड़ी आशा से उनकी ओर देखा था माँ  अनदेखा कर गईँ .
'बारह बजे तक तो मैं ही रहूँगी .फिर  एकाध घंटा ही तो और होगा ... इसके बिना वहाँ का  काम नहीं चलता . सारा घर फैला पड़ा है. कामवाली आएगी   ,नहाते-धोते  उसकी भी  चौकसी ज़रूरी ..'

मीता ने साध लिया, अपनी चाची से कहा,'कामवाली पर तो कड़ी नज़र रखनी होती है..पर हाँ अभी पांच-सात मिनट और रुक जाइए . वसु ,मेंहदी लगा ले... . '

हमारे घर जब वह तनय को और मुझे नाश्ता देने आई तो वह बोला था, 'बोला ,'आप ने गाने में हरा दिया हमें .बहुत अच्छी आवाज़ है .एक गाना रिकार्ड करलूँ आपका?'

वह बोली,'मेरा गला खराब है .'

'मुझे तो बिलकुल ठीक लग रहा है.'

'बोलना और गाना क्या एक ही बात है ?'

वह चुप हो गया .चलते समय फिर बोला था,

'अरे वसु जी ,आपको भाभी ने बुलाया है '.

बड़ी बेरुखी  से वसु बोली ,'अच्छा  ?"

मैने ताज्जुब से देखा ये ऐसे क्यों बोल रही है .

बाद में पता चला जूते-चुराई में इन लोगों की खूब लड़ाई हुई है.

कल रात कह भी रही थी,'ये लोग बरात में क्या आए आए अपने को लाट साब  समझने लगे ..'
अपने साथियों के साथ तनय इधर की लड़कियों को ,खूब हँस-हँस कर चिढ़ाता -खिजाता रहा था.

घर वालों ने अपनी लड़कियों को ही हिदायतें दीं उन लड़कों से कुछ नहीं कहा ,इसलिए और  खिन्न थी वह.

ऊँह, शादी-ब्याह में तो ये सब चलता ही है .
*
19.
शादी की तारीख रमन बाबू ने बड़ी सोच कर रखी थी .
 बीच में पड़नेवाली दुर्गापूजा की छुट्टियों का पूरा फ़ायदा विनय को मिला .कॉलेज बंद रहता है उन दिनों  .
मैं बड़ी उलझन में पड़ा  था उन दिनों .शादी के दिन वहाँ रहना नहीं चाहता.भेंट देने का सामान भी खरीदना था .,सोच लिया था, यहीं से  ले कर जाऊँगा .
पूजा की छुट्टियों के पहले वेतन मिलना था - मेरी पहली आय !
समय पर पहुँचाना भी जरूरी - माँ को सामान न मिला तो क्या भेंट देंगी उसे?
महिलाओं के लिए खरीदारी कभी की नहीं ,करना तो दूर साथ में गया भी नहीं था - वह भी जेवर और साड़ी की .दूकानदार  बडे ताड़ू होते हैं . अकेला पा कहीं उल्लू न बना दे .
कुछ  ट्रेनियों से अच्छी पहचान हो गई थी ,उन्हीं में एक शेखर ,जिसके ससुराली संबंधी   नगर में थे ,से बात कर ली .
'काहे ,चिन्ता करते हो .मेरी साली आखिर किस दिन के लिए है ,साथ ले लेंगे.'
उसने बताया हमारी शादी की तो सारी  तो सारी ज्वेलरी यहीं की रही. इस दुकान के पुराने गाहक हैं ये लोग .'
इधर बीच में रविवार था, बीच में एक छुट्टी लेकर मुझे  तीन दिन मिल रहे थे ,वेतन हाथ में आ गया था.
 भेंट खरीद कर   पहुँचानी भी थी  .
 उन लोगों के साथ  खरीदारी कर लाया. 
'पैसों की चिन्ता मत करो बाद में आ जायेंगे' - दुकानदार ने कह दिया था  .
माँ को पहले  लिख चुका था .
पहुँचना ज़रूरी था.साड़ी और चेन के बिना माँ क्या करतीं ?

शाम को पहुँचा .मेरे लिए खाना बना रखा  था.वसु घर आ गई थी ,माँ आनेवाली थीं .रात ही फेरे पड़ जायेंगे .बस ,फिर बिदा की तैयारी तैयारी .
कुछ करने को नहीं मुझे . ट्रेन के सफ़र के बाद नहाने चल दिया .
निकला तो माँ आ गईं थीं .
अटैची से निकाल कर साड़ी और चेन माँ को पकड़ा दी .
वे चेन को हाथ में लेकर वज़न का अनुमान कर रही हैं .ढाई तोले की लग रही है पेंडेन्ट भी सुन्दर  है - मोर का पंख !पर इत्ती भारी क्यों ली?'
'माँ, तुम्हारी भी कोई पोज़ीशन है. किसी से कम क्यों रहो !'
वसु साड़ी निकाल कर देखने लगी ,'अरे वाह,कित्ती सुन्दर  !'
नीले बैकग्राउंड पर रुपहले बूटे , भरा-भरा आँचल !
उसके ऊपर नील रंग खूब खिलता है.
'भइया तुम्हारी पसंद कितनी अच्छी है .'
हाथ में फैलाए  वसु अपलक देखे जा रही है .
'अच्छी लगी न तुझे ,मुझे पता था ,'
 अटैची से एक और नीली साड़ी निकाली लगभग वैसी ही बस ज़रा कम भारी - वसु के लिए भी ले ली थी.
 उसे पकड़ा दी  ,'ले वसूटी !'
दोनों हाथों से साड़ी चिपकाए मुझसे  आ लिपटी,' भैया तुम कितने अच्छे हो !'
'तू उससे गोरी है, और अच्छी लगेगी तुझ पर .'
मुख पर मंद स्मित लिये  माँ परम संतुष्ट भाव से देखती रहीं .
'कुछ अपने लिए भी लिया या सब इन्हीं लोगों पर लुटा आया ?'
'अभी पूरी ज़िन्दगी पड़ी है माँ ,हर महीने पैसा मिलेगा .'
'खूब तरक्की कर बेटा ,बस  मंदिर में प्रसाद चढ़ाना है !'
 'माँ ,मुझे एक बात लग रही है तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया ..'
'कैसी बात कर रहा है मुन्ना,' फ़ौरन टोक दिया उन्होंने .'ये सब मेरे लिए ही तो है. बस यही चाहिये मुझे ,तुम लोग खुश रहो भरे-पुरे- मेरा सबसे बड़ा सुख यही ...'
जानता हूँ अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा उन्होंने . .
'पर्स निकाल कर उनके हाथ में पकड़ा दिया था,'जित्ते चाहिये हों, मां' .
'बस एक-सौ-एक प्रसाद के ..'
निकाल लिए गिन कर और पर्स वापस कर दिया.
'किसी से कह मत देना कि मेैं घर पर हूँ  '
उपहार पैक किया वसु ने, फिर चले गए वे लोग - उसके विवाह के साक्षी बनने.
मैं घर पर हूँ अकेला -
रात ही तो निकालनी है ,बीत जायेगी यह भी  !

*
माँ ने बताया था -इनके रिवाज है पहली बिदा जनवासे में हो जाती है .वहाँ ससुर, जेठ ,ननदोई ,आदि भेटें देकर कुछ खिला -पिला कर वापस भेज देंगे. तब ससुराल के जोड़े में,जमाई को टीका कर ,उसी के साथ कल ससुराल के लिए बिदा होगी .दो प्रस्थान ,एकदम एक आँगन  से न हों, सो शादी के बाद जनवासे के लिए  पहली बिदा हमारे आँगन  से होगी .
नहा कर तौलिया डालने छत पर गया था .
इतने में नीचे से आवाज़ आई ,'माँ  दीदी आई हैं.'
साथ आई लड़कियाँ देहरी के बाहर ही रुकी रहीं. 

वह अंदर आ रही थी .
माँ कह रहीं थीं ,'अरे ,तैयार हो तुम तो ?

'बाबूजी ने कहा सगुन पूरे होना चाहियें ,कोंछा डलवा आओ! माँ, रुकना नहीं है.'
बाहर से एक लड़की बोली ,'विनय भैया ले जाने के लिए  के लिए वहाँ दरवाजे पर इंतज़ार कर रहे हैं ,भाभी जल्दी करना .'
उसने चुपचाप सुन लिया .

माँ कह रहीँ थी, 'हाँ , हाँ वो तो करना ही है .मैं लाती हूँ .'
वे  सामान लेने अंदर गईं

मैं नीचे उतरते उतरते बीच में रुक गया था .

वह उधर चली आई.

'मुझे पता था आओगे .मुझसे बड़े हो प्रणाम कर लूँ  तुम्हें.'

मैं बड़ा हूँ ? हाँ.
 उसने एक बार माँ से पूछा था,' ब्रजेश मुझसे बड़े हैं न ?'

माँ ने माना था,' हाँ ,उन पुराने चक्करों में इसका साल बेकार चला गया था .पढ़ाई में पिछड़ गया !'
वह सामने खड़ी कह रही थी,
'देखो ,तुम्हारी पहली आय में से अपना हिस्सा वसूल लिया न मैंने ?'

 ध्यान से   देखा - वही रुपहले बूटोंवाली नीली साड़ी - सिर ढके नीले पल्ले  का बॉर्डर चेहरे पर दमक रहा था ,भाल बिन्दी माँग सिन्दूर, पेंडेन्ट का मोरपंख ऊपर ही  झलमला गया - जैसे कोई अप्सरा ! 
अपलक देखता रह गया था.

मेंहँदी रचे हाथ जोड़े वह झुकी. अध-बिच ही मैंने  दोनों हाथ बढ़ा कर सिर  साध, जड़ाऊ टीके से सजा उसका भाल चूम लिया ,'जाओ पारमिता ,सुखी रहो!'

अपने को  सँभाल नहीं पा रहा था दृष्टि धुँधला गई . कहीं देख न ले , सिर घुमा कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगा .
वह देहरी की ओर चली गई.
 उसे छूट थी सब के सामने खुल कर रोने की , मिल-भेंट कर कर आँसू बहाने की.

माँ सूप लिए चली आ रहीं थीं पहले ही तैयार कर रखा था.

 'अरे वसू , वो  बड़ा रूमाल ले आ ,वहीं रखा है ,इसका आँचल खराब हो जाएगा .'
वे लोग घर की देहरी के समीप खड़े हैं .इस मुँड़ेर की झिंझरी से दिखाई दे रहा है .

'बेटा ,पति के घर जा रही हो मन  में कोई पूर्वाग्रह ले कर मत जाना ,गृहस्थ-जीवन एक कसौटी है ,मुझे विश्वास है खरी उतरोगी तुम !'

'माँ ,कृतार्थ हुई! आशीष तुम्हारे अंतर्मन से निकला है. शिरोधार्य किया मैंने .'

ज़रा रुक गई थी बीच में ,गले में कुछ आ गया था शायद .फिर बोलने लगी -

'...और उनके प्रति शंका न रखना माँ ,विनय ने ख़ुद मुझसे पूछा था ,'आप के मन में कोई बाधा-संशय हो तो मुझे बता दीजिए ,मैं इस शादी से  मना कर दूँगा .आप पर कोई आँच नहीं आएगी .'

'जान कर  कर बहुत संतोष हुआ' 
उनकी आवाज़ में वही भाव झलक रहा था

भावावेश में मीता ने झुक कर उनके पाँव छू लिए.

उसे अँकवार भरते दोनों के आँसू बह रहे  थे .

रूमाल लेकर आ गई वसु.

देहरी पर खड़ा कर माँ  कोंछा डालने  बढ़ीं .सूप में चावल और चने की दाल वाली द्यूलारी,उसमें कुछ लड्डू,और दस-दस के कुछ नोट  .देहरी पर खड़ी मीता ने आँचल पसार कर ग्रहण किया.
माँ ने रूमाल  ऊपर  फैलाया दिया  . सात बार सूप से उसका आँचल भरा, मुट्ठी भर बचा लिया .
 सजल नयन हो बोलीं ,'बेटा,  ये अंजलि  में भर ले , जब चलने लगना बिना इधर घूमे ,मुँह फेरे हुए ही पीछे उछाल देना . और ये पानी -दो घूँट पीकर भरा गिलास वहीं रख देना - मायके में तेरा अन्न-जल बना रहेगा .... फिर आना बेटा !'

रोती हुई वसु को खींच कर पारमिता ने अपने से लगा लिया .नीचे वे तीनों रो रहीं थीं

'दीदी को ले जा बेटा ., वहाँ सब इन्तज़ार कर रहे होंगे .कह देना मैं अभी आ रही हूँ ..'
 पानी का गिलास वसु ने लेकर ताक पर रख दिया .पलट कर देखने की  मनाही थी वह आँसू बहाती चली गई. 
वसु साथ है .साथ की लड़कियों ने अपने बीच ले लिया. 

 माँ सूप लेकर अंदर .
मैं छत पर खड़ा ,ज़मीन पर उसके बिखेरे द्यूलारी के दाने अपलक देखे जा रहा हूँ !
(क्रमशः)
*

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

A LAST WISH .


by
Kishore Asthana
Is there more that I can want than that the flag of my country be draped on my coffin? Yes there is. Is it too much to with that the flag be a proud one, unsullied by the pettiness of the politicians and held up by even a lone statesman?
Statesman, yes, father-figure, no. We do not want father figures - or mother figures - in India. We have too many of them and all of them, perhaps the right men or women at the right time, are the wrong men for now. They stand still as the world passes them by and instead of leading it, they try to hold it back, to keep alive the illusion that they are the right men for ever.
These father & mother figures demand attention, they compel the present to keep looking at the past and they divert those who should be looking at the future and shaping it. Those who should be building for tomorrow are busy planning mausoleum and memorabilia.
We need young people of today to become leaders in their own right not shadows of old people of yesterday. We need to face the rising sun so that the learning of the past is in our being but the facts in our shadow. We need young people to think for themselves, of others. And be mature enough not to feel lost because there is no one to look up to or even because no one looks up to them. From a country of nearly a billion people, it is too much to expect one such? Six? A dozen?
But where are they? Are they waiting for the challenge, the call to arms? Do such people wait for anything? Does the world wait for them?
Unfortunately, we do have some young people posing as leaders but these young people are a mirror image of father figures. They are son figures. We do not want father figures and we do not want ‘son-figures’. Just because their father or grandfather was a leader does not mean they should be viewed in the same light. It is not logical to hire the son or grandson of doctor to cure us just because of his relationship with a doctor. The logic holds for leaders, too.
Perhaps my country has yet to produce a person of today, a person of promise who comes ahead on his own and lives up to this promise. And the time is now for we cannot wait any more. 

In the current context, we have to ask – “Is Mr. Modi such a leader?” Yes, he has come ahead on his own. Now we have to see if he lives up to his promise. If he does not do so, it would be another false dawn. However, if he does live up to his promise, India would have found the kind of leader we need.
And when I die, there is nothing more I ask than that such a person drapes me in my flag, while others rejoice that I had lived with them.
 *

बुधवार, 3 सितंबर 2014

कथांश - 16 & 17.

*  16.

उस दिन उसे छो़ड़ने गया था ! 
पहुँचाने गया होता तो आगे की संभावना रहती.उस दिन छोड़ कर चला आया .
 लौटने से पहले रुका था  कहा था ,' बॉय,चलता हूँ ,पारमिता !'
पारमिता?
निशाना वही बनी थी .हाँ, गोली दाग़ते समय चलानेवाले को भी गहरा झटका लगता है .
मेरी और देखा उसने ,चेहरे की थकान पर कुछ  गहरा-सा पुत गया था, मुझसे देखा नहीं जा रहा था.
वह समझ गई - अबसे वह पारमिता है .
 दोनों होंठ कुछ कस गए ,जैसा अक्सर सोचते समय  देखता था
मुँह से अस्पष्ट  बोल निकले थे  बाद के शब्द सुन पाया, '...  अच्छा ब्रजेश !
फिर उसने हाथ हिलाया था.
क्षण भऱ को दृष्टि मिली  और  हम पलट गए  दो दिशाओँ में .
हाँ, मैं भी अब बिरजू नहीं ब्रजेश हूँ , दोनों को आगे यों ही रहना है.
उसे छोड़ कर मैं  लौट आया था .
 कल के लिए तैयारी भी करनी थी .
*
कपड़े तैयार रखे थे ,सारा सामान एक जगह इकट्ठा.
 वसु ने कहा ,'भइया तुम्हारे कपड़े धुले प्रेस किए तैयार हैं '.
'तूने किये वसु ?'
'मैं करने जा रही थी माँ ने पहले ही कर दिये,यहाँ लाकर मैंने रख दिये .'
वसु को कपड़े खरिदवा दिए थे ,शादी में उसे मीता की बहिन बन कर रहना होगा ,
उसने पूछा था ,'भइया, तुम आओगे?'
माँ ने एकदम टोक दिया ,'वह कैसे आ पायेगा .अभी तो ट्रेनिंग शुरू हो रही है .'
उनने मेरी ओर नहीं देखा .
तुम कितनी अच्छी हो, माँ !
*
हम लोगों ने साथ बैठ कर खाना खाया .मन अब भी भटक रहा था.हाथ और मुँह बार-बार रुक जाते थे ,
'कल जाना है, आज हलका रहूँ तो ही ठीक , कह कर हाथ खींच लिये '.
'अच्छा बेटा, इतनी-सी खीर खा ले .वसु ने तेरे लिए ही बनाई है ,
'ला, बहन दे '
'और ये मठरी हैं थोड़ी-सी ,साथ रख लेना .'
'मठरी ?'
'हाँ भइया ,मीता दीदी दे गईँ थीं तुम्हारे ले जाने को - अलग से ..'
 उसे पता है मुझे मठरियाँ बहुत अच्छी लगती हैं .
उफ़, ..अब बस करो ,नहीं सहन होता यह सब !
ठीक है, कल चला ही जाऊँगा !.
*
रात को वसु बताती रही थी ,उनके घर दीदी के ससुर आए हैं  ,विनय का भाई है न तनय उसे  लेकर .'
'अच्छा!'
  जोड़े बनवाने के लिए दीदी की नाप चाहिये न ..और जेवर के लिए भी पूछना है .
माँ ने बताया  कह रहे थे ,'दुल्हन की बहिन के लिए भी एक जोड़ा बनेगा. .'
'वाह,वसु तेरी तो मौज आ गई .'
'हाँ भइया, वो तो कह रहे थे तिलक लेकर जब भाई लोग जायें तो मेरी बेटी को भी लाना ,अपनी दीदी का घर देख आए .मुझे हमेशा अपनी बेटी कहते हैं ..'
'अरे वो तो वो ,ये राय साब भी मीता के लिए गहने-कपड़े कर रहे हैं ,साथ में वसु के लिए भी.. गहने नहीं कपड़े.मैंने मना किया तो कहने लगे मेरी भांजी है तुम मत बोलो .'
'वाह ,उन्हें यह सब करने की क्या ज़रूरत.मुझे नहीं पसंद मेरी बहिन के लिए कोई और करे .'
'पर कह तो नहीं सकती, न !.
'पर अब मुझे भी मीता के लिए कुछ ढंग का करना पड़ेगा .' माँ कुछ परेशान लगीं .
'क्या करना चाहती हो ?'
'मेरी एक चेन फ़ालतू रक्खी है. वही पॉलिश करवा के और साड़ी तो नई ही  खरीदनी पड़ेगी ...'
'नहीं,नहीं ,तुम अपनी मत देना ,मैं वहाँ से पैसे भेजूँगा .अगले महीने से पे मिलने लगेगी माँ ., .'
'अभी से अपना खर्चा मत बढ़ा ,मैं कौन ज़ेवर पहनती हूँ . '
'नहीं सुनोगी तो मैं  वहीं से खरीद कर ले आऊँगा .'
वसु बोली ,'वहाँ तो खूब डिज़ाइन मिलते होएंगे  यहाँ तो के तो ..बस .'
'तुझे कैसे पता ?'
'दीदी की खरीद में मैं ही तो साथ जाती हूँ .'
'पर शादी से पहले तू  आएगा कब?.
'लगा लूँगा एक चक्कर .'
*
 17.
तनय का नाम कई बार सुना था .रमन बाबू का छोटा बेटा ,पारमिता का देवर .
कोई उत्सुकता नहीं थी कि उससे मिलूँ  .
पर शादी के अगले दिन सुबह-सुबह हमारे घर हाज़िर हो गया  -
'मैंने सोचा बुआजी के घर जाकर फ़्रेश हो लूँ .वहाँ तो अपना नंबर  आने का नहीं.'
'हाँ ,हाँ आओ, बेटा.'
'अरे भैया भी आये हैं .' पाँव छूने आगे बढ़ा .
मैं पीछे हटा,माँ ने रोक दिया ,'रुको बिटिया के देवर हो .पाँव मत छूना .'
 वो तो नहा धोकर वहीं बैठ गया  .माँ चाय-नाश्ता कराने लगीं .. बातें खूब करता है !
मुझसे पूछा ,'भइया, कल आप दिखाई नहीं दिये ?'
मैं टाल गया  ,'सब बिज़ी. मुझे कौन देखता वहाँ ?"
विनय से दो साल छोटा है. प्रतियोगिताओं में बैठ रहा है , ज्यादा पूछने में मेरी कोई रुचि नहीं थी. .
वही अपने आप बताता रहा .
कोचिंग भी लेता है .
कई बार वे लोग इसे भी कुछ कक्षाओँ को कोच करने भेज देते हैं.
अपने  किस्से  बताने लगा-
एक बार क्या हुआ पास के कस्बे में इनका एक क्लास चलता है तीन-चार महीने का.
वहीं के हाईस्कूल-इन्टर के लड़के  आते हैं बहत कम सीरियस ,ज्यादातर यों ही से .
 एक क्लास में शिक्षक नहीं आया था ,सो तनय को भेज दिया  -उधर सामनेवाले कमरे में दूसरी कोई क्लास चल रही थी - जनरल नॉलेज जैसा कुछ लगा  .
,बीच में दरवाजा नहीं था .
थोड़ी देर सब शान्ति से चलता रहा .फिर कुछ गुल-गपाड़ा .
हम भी बाहर निकल के खड़े हो गये .
यहीं आस-पास के कुछ फ़ालतू के लड़के घुस आए थे. तीन थे या चार होंगे .कोचिंग में दबते कहां हैं ये लोग !
क्लास के भी  कुछ  लड़के बाहर निकल आए .

वो लड़के  बड़ी डींग हाँक रहे थे ,हमने ये कर दिया- वो कर दिया .सरकार  हम बनावत हैं . हमसे पूछो का हुइ रहा है.'
कुछ खुराफ़ात करके आये थे, उसी की गर्मी चढ़ी थी.
पहचान के लड़कों को अपनी कारस्तानियाँ सुनाने लगे
 'तुम्हारे ई सब पढ़े से कुछू नायँ होयगा .असली काम तो हम किये हैं .'
क्लास के बाहर खड़े होकर चिल्लाए थे ,'का पढ़ रहे हो ?'
 लड़कों ने जवाब दिया ,'सामान्य ज्ञान '.
'ई जो पढ़ रहे हो सब बेकार है सब गलत-सलत .रद्दी किताबन महियाँ  धरा रह जायेगा.'

'कुछू करन-धरन के  गियान  से तो ई किताबन वारे माश्टर ,सब कोरे  हैं .'
क्लास से एक ने पूछा ,'काहे ?'

'जिन लोगन के नाम गिनाय रहे हैं ,ऊ कोई रहबैया नाहीं. ई सिच्छा-मंत्री ,ऊ स्वास्थ मंत्री, ई फलान- ढिकान सब फालतू की   रटन्ट . .'
'तुम्हें कैसे पता?'.
'अरे, असली करैवारे तो हम हैं ,जो हम करें ,आगे वोई तो ये पढ़ायेंगे.'
'तुमने क्या किया ?'
'सारे  वोट हम लोगन ने  अपने हिसाब से करवाये हैं ,'
सीना  ठोंककर बोला,' हम जानित हैं. ,इनका का मालूम ?'
दूसरा चिल्लाया,'कमरा में किताबें घोटन से कुछू नाहीं होत है .बाद में सब लिखो तो उहै जात है जो हमार  करनी से सामने आवत   है.'
फिर मास्टर  से बोला, 'ई का गियान बाँट रहे हैं ,माट्साब? कान खोल के सुन लेव. तुम लोग  ई सब अट्ट-सट्ट पढ़ाय रहे हैं .खुदै को नहीं मालूम कि का हुइ रहा है.'
उजड्ड लड़कों के सामने मास्टर बिचारा क्या करे  कहा -
'अरे, जो किताब में लिखा है वही तो पढ़ावेंगे.'
 'जराय देउ ई बेकार  किताबन का . अब  तो सब बदलै का परी .लिखि कै धल्लेउ.'
लड़के बात कर रहे हैं,' हाँ ,चुनाव में नये लोग आयेंगे .' 'ये सब गलत हो जाएगा .ये लोग डंडे के ज़ोर पे  वोट डलवाते हैं .'.'सब जगह इनका दखल है.'
'अइसा काहे पढ़ो  जो कल्ल ही बदल जाय?'
'चलो रे छोरों ,.बेफालतू मूड़ी खपावत हो .'
लड़के संशयपूर्वक इधऱ-उधर देख रहे हैं.
'अरे ,ई सब पढ़ा-लिखा बेकार .कुछू काम न आई.एक नौकरी तक ना मिली.'
'ई तो हम करैवाले हैं .जौन  चाहै ,उहै करवाय लेंगे .'.
 'जान्यो , हम सब इन्तजाम पहिले ही कर लिहिन .तुम पढ़-लिख के का कर लेओगे ?'
'अपना  कैन्डीडेट ही जिताय के मानेंगे,चाहे खून-खराबा हुइ जाय'
'क्या ?..क्या कर रहे हो तुम लोग ?.चुनाव में भी गड़बड़  ?'मास्टर ने पूछा
वह दोनों हाथ हिलाकर हँसा -' काहे बतायें ?और तुमहू मास्टर चुप्पे रहो .काहे से कि हमसे पंगा लेन का नतीजा ...'...कहता-कहता लड़कों को आने का इशारा करता घूम कर चल दिया .
कुछ लड़के बात-चीत के दौरान ही उठ खड़े हुए थे चलने की मुद्रा में .उनके साथ और भी मास्टर का उतरा चेहरा  देखते उठने लगे, सब   बाहर भागे. निकल गये क्लास से  .'

मास्टर  कुछ देर हकबकाए-से खड़े देखते रहे फिर परेशान से अपना झोला उठा कर स्कूल की बाउंड्री से बाहर निकल गए .
 झुँझलाते जा रहे थे ,'इन जाहिलन  को सिच्छा देना हमारे बस की बात नहीं .  सुसरी और हवा बिगाड़ के धर दी .पालिटिक्स बदमास-गुंडन की खेती हुइ .गई .--हे राम कौन ठिकाना लगेगा ई देस का ..!....'  

खूब हँस-हँस कर वर्णन करता रहा वह !
ये तो बड़ा मज़ेदार लड़का है, मैंने सोचा - ख़ुश-मिजाज़ और तेज भी .

*
(क्रमशः)