दृश्य परिवर्तन
नटी - महात्मा बुद्ध हमारे देश के बहुत बड़े लोकनायक रहे थे ?
सूत्र - उन्होंने सारे संसार का कल्याण करने के लिये जन्म लिया था .पर कैसी विचित्र बात कि अपनी ही जन्मभूमि में लोग उनके आदर्शों को भुला बैठे .
नटी - संसार का चलन भी अजीब है समय के साथ लोगों की मनोवृत्तियाँ भी बदलने लगती हैं .
सूत्र - बाहरी लोगों ने रास्ता देख लिया था .देश पर बाहरी आक्रमण होने लगे थे . पर...आप कहिये मित्र, आगे की कथा सुनने को उत्सुक हैं हम .
लोकमन -
बर्बर शक औ' हूणों ने क्या कम उत्पात मचाया ,
पर इस स्नेहमयी धरती ने अपना रंग चढाया .
चन्दन सँग पानी की बूँदें मिलकर ऐसी महकीं ,
भरतीय संस्कृति का सबने नाम अनोखा पाया .
जो भी इस धरती पर आये इसका हो रह जाये .
सूत्र. - समन्वय और सह-अस्तित्व की भावना ऐसी थी कि भारत भूमि सभी का आश्रय-स्थल बनती रही .
लोकमन -
फिर कुषाण साम्राज्य देश के लिये अनोखा युग था ,
बौद्ध धर्म का महायान मत जिस छाया में विकसा .
कला और साहित्य सभी में नई दृष्टियाँ जागीं,
इसी भूमि पर रसे-बसे सब, रही न कोई कटुता .
मिश्रण का पञ्चामृत हमको चिर-चैतन्य बनाये .
सदी आठवीं ,फूट आपसी भारत की दुखती रग
बौद्धों की गद्दारी ,बिन कासिम ने साध लिये पग .
दाहर रण मे खेत रहा ,रानी ने जौहर साधा ,
सिन्ध प्रान्त के नगरों पर अब अरबों की बन आई .
काश हमारी भू ने ऐसे पूत न होते जाये .
सूत्र - मित्र लोकमन ,विदेशी लोग सदा हमारी धरती पर आँख गड़ाये रहते थे,और मौका पाते ही आक्रमण कर देते थे .और देखो अपने यहाँ के लोग ,सब जान समझ कर भी चेतते नहीं थे .
लोकमन - अरे अन्धविश्वास ,मूढ़ताओं की बात न पूछो ,
गायों को आगे कर दुश्मन आगे बढ आते थे ,
इनका भुजबल निष्क्रिय और नपुंसक हो जाता था .
'मंदिर तोड़ेंगे 'धमकी सुन पीछे हो जाते थे ,
इसीलिये तो आगे बढ़ बैरी को जीत न पाये .
तुर्कों के हमले ,जन-धन का नाश ,करारी हारें ,
फिर जयचन्दी नीति ,आपसी द्वेष ,फूट के मारे ,
काश पिथौरा,अहं तुम्हारा इतना प्रबल न होता
विष- फन बिन कुचले जो छोड़ा , अंत दंश ही पाया.
नटी - सचमुच . शासकवर्ग में स्वस्थ चिन्तन का अभाव, अपने अहं की तुष्टि और नीति-निर्धारक तत्वों की उपेक्षा .देश के भविष्य की चिन्ता किसी को नहीं .धर्म जब एक वर्ग की बपौती बन जाता है तो समाज की दृष्टि भी अपना सन्तुलन खो बैठती है .
सूत्र - वही हुआ ,हिन्दू और बौद्ध धर्मों में अनगिनती संप्रदाय चल निकले .दृष्टि संकीर्ण हो गई ,जटिलतायें दिन- दिन दूनी बढले लगीं .उन अनर्थों को मनु और याज्ञवल्क्य भी देखते तो चक्कर खा जाते .
लोक - मदिरा ,मुद्रा ,मत्स्य, माँस,बढ़ता व्यभिचार निरंतर ,
तंत्र-मंत्र ,अति गुह्य साधनायें वीभत्स भयंकर ,
खण्ड-खण्ड हो बिखर रही थी जब समाज की सत्ता ,
एक सूत्र मे उसे पिरोने यहाँ पधारे शंकर .
भारत का भूगोल समझ कर साधी चार दिशायें
कोढ़ बन गई थी समाज की बिगडी वर्ण व्यवस्था ,
वञ्चित कर डाला अछूत कह ऐसी बुरी अवस्था .
अधिकारों से हीन, दैन्य से भरा हुआ था जीवन,
प्रखर भक्ति की धाराओं ने उन्हें दे दिया रस्ता .
दलित-अछूत, आर्त- जन प्रभु के शरणागत बन पाये
दृष्य - कावेरी तट
(संध्याकाल ,चिड़ियों की चहचहाहट और पानी के बहने की आवाजें .पृष्ठभूमि में स्थित मंदिर से घंटाध्वनि ,वेदों के उच्चारण के स्वर . तरुप्पन चर्मकार झोपड़ी के बाहर बैठा है.)
तिरुप्पन - नारायण,नारायण .मैं नीचों में भी नीच .मैं चमार हूँ .सब मेरे स्पर्श से बचते हैं .बस मुझे एक दुख है,अपनी नीच जाति के कारण मैं तुम्हारे दर्शन का भी अनधिकारी हो गया हूँ .साल में एक बार जब तुम्हारी सवारी निकलती है तब मेरा मन क्षण भर को तृप्ति पाता है .
'दरशन की प्यासी दोउ अँखियाँ ,
मो सों कब मिलिबो हे राम .
तडप-त़डप मैं रैन बिताऊ,
साँस-साँस में तुम्हें बुलाऊं .
कब तक तरसूँ मोरे प्रभु जी ,
कब पुरिहौ मनकाम .'
[दो स्त्रियाँ आती हैं]
एक -इतने करुण स्वर में कौन गा रहा है ?
दूसरी -वही है तिरुप्पन चमार ...रात -रात भर ऐसे ही गाता रहता है .मुझे तो सुन-सुन कर रोना आता है .
पहली -भगवान से कितना प्यार है इसे ,कितनी पीर है इसके मन में .फिर जाने भगवान इससे दूर कैसे रह पाते है .
[एक पुरुष आता है ]
पुरुष - आधी रात होने को आई ,यहाँ क्या कर रही हो जमुना और मन्दा ?
मन्दा - तिरुप्पन का गाना सुन रही थी .कितना दर्द है इसके स्वरों में .
पुरुष -प्रेम की पीर ऐसी ही होती है .सवर्ण लोग इसे मंदिर में घुसने नहीं देते .
जमुना - उसका प्रेम सच्चा होगा तो तो भगवान स्वयं पसीजेंगे .
मंदा - और क्या .भगवान भक्त की पुकार पर भागे भागे चले आते हैं .मेरा बस चले तो अभी इसे ले जा कर मंदिर में खड़ा कर दूँ .
जमुना - हाँ .और वे लोग मार -मार कर उसकी खाल उधेड़ देंगें .इसने देहरी भी छू ली तो मार ही डालेंगे .
पुरुष - ....तुम लोग घर जाओ .कितना सन्नाटा है और कितना सुनसान है चारों ओर .
मंदा -जाने का मन तो नहीं होता ....
पुरुष - जाओ ,जाओ .मैं सारंग मुनि से बात करूँगा .वे महान और पवित्र वैष्णव हैं .[गाने की आवाज आ रही है ] अरे, वह झोपडी के उधर कौन खडा है ?कौन है वहाँ ?
[एक साधु आगे आता है ]अरे आप , सारंग मुनि .
मुनि [मुँह पर हाथ रख कर चुप रहने का इशारा करता हुआ उसकी तन्मयता में बाधा मत डालो बंधु .बडी शान्ति मिलती है यहाँ .मैं तो रात के 3-4 घंटे यहीं बिताता हूँ .ईश्वर तो इसके हृदय में है ,मेरे- तुम्हारे पास कहाँ ?
पुरुष -हाँ ,मुनि जी ,भगवान तो इसी के पास है .पर ये पूजा करनेवाले पुरोहित कहते हैं ....
मुनि -वे तो धर्म की सौदेबाजी करते हैं .परमात्मा तो अंतर्यामी है ,सबके मन की बात जानता है .ऊपरी आडंबर से प्रभु रहीं रीझते .
पुरुष - और ये जाति धर्म पूजा-अर्चा ?
मुनि - ये सब बेकार की बातें हैं .आत्मा से निकलनेवाली आकुल पुकार ही उसे जगाती है .
जमुना - फिर इसे उनके दर्शन क्यों नहीं हुये ?
मुनि -समय आने पर वह भी होगा .
*
दूसरी ओर का दृष्य-- नामदेव और ज्ञानदेव
नाम -मैंने क्या कुछ अनुचित किया ज्ञान देव जी ?
ज्ञान - मित्र नामदेव ,तुमने सचमुच हिम्मत का काम किया .चोखामेला मरे जामवर ढोता था ,उसे तुमने मंदिर में घुसने को प्रेरित किया .पर कहीं वे लोग उसके प्राण ही न ले लें .
नाम -मैंने उसे कहा था कि तुम्हें जान का खतरा है .पर उसने कहा कि आप और ज्ञानेश्वर जी यदि यह उचित समझते हैं तो इसके लिये मैं अपने प्राण जान भी दे दूँगा .
ज्ञान - देखो , वहाँ क्या हो रहा है ? अरे वे लोग चिल्ला रहे हैं .
[आवाजें आती हैं -मारो,मारो ,साले को जिन्दा मत छोडो ....हाय भगवान ,हे राम ,....मरे जानवर ढोता है मंदिर में घुसेगा ....अरे छोडो चोखा मेला को ...तुम लोग भक्त नहीं हो कसाई हो ...हत्यारे हो ...इसे भी मारो ..और बोलेगा ...इस पापी को भी मत छोड़ो ]
नाम -चलो चलों .उसे बचाना है नहीं तो वे उसे मार डालेंगे .
[दोनों चिल्लाते हुये जाते हैं -उसे मारे मत ,मत मारो .]
आवाज -यही हैं नामदेव और ज्ञानेश्वर ,यही इन लोगों को उकसाते हैं .
ज्ञानेश्वर -मैं कहता हूँ रुक जाओ .तुम में से कौन दूध का धोया है ?तुमने जो कर्म किये हैं ,तुम समझते हो उन्हें कोई नहीं जानता ?
नाम -तुम ईश्वर के सच्चे भक्त हो ?क्या तुम्हारे भीतर कलुष नहीं ?याद करो उस कान्हू पात्रा को ,जिसे तुम वेश्या और पतित कहते थे जिसने धर्म छोडने के बजाय अपनी जान दे दी ..
ज्ञान - क्या तुम उस जनाबाई से श्रेष्ठ हो जिसे तुम शूद्र कहते हो ?,जिसे तुमने मार डालने में कोई कसर नहीं छोडी लेकिन भगवान ने बचा लिया ?क्या तुममे इतना सत्य है कि बलिदान दे सको ?किस दम पर तुम चोखा मेला को मारोगे ?
नाम - ये शूद्र क्या इन्सान नहीं हैं ?सच्चे भक्त तो ये हैं ,ये अभय हैं इनका सिर अपने भगवान के सामने झुकेगा ,तुम्हारे सामने नहीं .सच्चा भक्त तो निर्भय होता है ,वह केवल अपने आराध्य के सामने झुकता है .भक्त चोखा, हम तुम्हें नमन करते हैं .
*******
मुनि - ज्ञानेश्वर ने चोखा मेला को मंदिर में प्रवेश करा दिया .अब तिरुप्पन को कोई नहीं रोक सकता .
[इस बीच तिरुप्पन झोपड़ी में चला गया है जहाँ से संगीत के धीमे स्वर आ रहे हैं --
'मेरो मन चैन न पावे ,तुम बिन ,मेरो मन ....']
भक्त तिरुप्पन , बाहर आओ !
तिरुप्पन - [ बाहर आकर प्रणाम करता है ]कैसे पधारना हुआ ,मुनि जी ?
मुनि -चलो ,भगवान तुम्हें मंदिर में बुला रहे है .लेकिन यह सोच लेना कि अब तुम्हें अन्याय के सामने झुकना नहीं है .प्राण जाने का भी खतरा है ,अच्छी तरह सोच लो .
तिरु -मेरे प्राण उन्हीं में हैं .भगवान के सामने मेरी जान की कोई कीमत नहीं .लेकिन मुनि जी आपको कैसे पता चला कि भगवान ने मुझे बुलाया है ?
मुनि - मेरी आत्मा से परमात्मा ने कहा है कि तिरुप्पन को भीतर ले लाओ .
तिरु -[विभोर होकर ] आज मैं उनके दर्शन करूँगा .साक्षात् अपनी आँखों से देखूँगा .हाँ चल रहा हूँ मैं ....
[दोनों जाते हैं ,कुछ देर में कोलाहल उठता है ..अरे चमार मंदिर में घुस गया ,चल निकल ...मारो,मारो ..मंदिर अपवित्र कर डाला दुष्ट ने ..खींच लाओ बाहर नीच को .और मारो ,जिन्दा मत छोडना
..दो आदमी जाकर लौटते हैं .चुपचाप खड़े हो जाते हैं ,पीछे पीछे सारंग मुनि आते हैं .]
सारंग -क्या हुआ ?उसे खींच कर लाये नहीं ?
[वे चुप खडे हैं ]अब उसे बाहर नहीं निकाल सकते तुम .भक्त ने भगवान को पा लिया है .
एक आदमी -तिरुप्पन मर गया .
सारंग -मरा नहीं वह उन्हीं में समा गया .है तुममें कोई इतना पवित्र,जो अपनी जान की बाज़ी लगा सके ?
तुम लोगों से बहुत ऊँचा था वह .जिन्दगी भर उसे तुम लोगों ने तड़पाया पर अन्त में वह जीत गया .अब क्या देख रहे हो ?जाओ अपना काम करो .
****
नटी - युग की विषम स्थितियों को सम करने के लिये महापुरुषों का आविर्भाव होता है .भक्ति जिस लहर ने सारे भारत को सींच दिया ,उसका श्रेय किसे दिया जाय ?
सूत्र - गुरु रामानन्द को .समाज मे दलितों और वंचितों के उन्नयन का पथ उन्हीं ने प्रशस्त किया .क्यों मित्र ,लोक मन ,तुम्हारा क्या विचार है ?
लोक - भक्ति द्राविड ऊपजी ,लाये रामानन्द ,
परकट किया कबीर ने सप्त द्वीप नव- खण्ड .
*1
दृष्य - बढई लालो का घर . तख्त पर गुरु नानक ,सामने एक थाली रक्खी है ,लालो खड़ा होकर पंखा झल रहा है .उसकी पत्नी में एक प्लेट में रोटी ला कर उनसे लेने का आग्रह कर रही है .गुरु नानक थाली पर हाथ लगा कर रोक रहे हैं .]
नानक - नहीं बीबी ,अब नहीं पहले ही बहुत खा लिया .
लालो -और शर्मिन्दा मत कीजिये गुरु साहब .मुझ गरीब के ये सूखे टिक्कड ,आपसे खाये नहीं जा रहे होंगे .[इसी बीच पकवानों से भरी थाली हाथ में लिये मलिक भागचन्द का प्रवेश ]
भागो - मन तो बहुत दुखी हुआ कि हमारी दावत की अरज नामंजूर कर गुरु साहब ने बिचारे गरीब लालो के घर खाने की ठानी .हमें बराबर लगता रहा कि कहीं गुरु साहब भूखे न रह जायँ,सो यह ले आया .[थाली में परोसने का प्रयास करता है ]ये क्या खिला रहा है गुरु साहब को .सूखे टिक्कड ?अरे हमारे यहाँ से माँग लाता .[लालो और उसकी पत्नी शर्मिन्दा होकर सिर झुका लेते हैं .]
लालो - जो हमारे बस में था हाजिर कर दिया .
नानक -उन पकवानों में मुझे इन्सानों का खून दिखाई दे रहा है .भागो -कैसी बात कर रहे हैं साहब जी ,.इतनी पाकीजगी से मेरी घरवाली ने अपने हाथों से बनाये हैं .हमें तो कुछ नहीं दिख रहा .
नानक - जो औरों को नहीं दिखता हमें दिख जाता है .भाग चंद, देखो लालो की मेहनत का पाक दूध उसके टिक्कडों में रसा बसा है .और तुमने जो इतनी दौलत जोडी है ,वह कहाँ से ?ईमानदारी से कहीं खजाने जुडते हैं .दूसरों की मेहनत से नफ़ा तुम कमाते हो .तुम्हारे अन्न में दूसरों का खून समाया है .जितनी आसानी से ये टिक्कड़ हजम होंगे ,तुम्हारे ये पकवान उतने ही विकार और बीमारियाँ पैदा करेंगे ..
भागो -[कुछ देर सिर झुकाये खडा रहता है ]मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ गुरु साहब .आपने मेरी आँखें खोल दीं .
[इसी बीच लालो एक तसला ले आता है उसकी पत्नी पानी डालती है ,नानक हाथ धोते हैं और लालो के दिये हुये सादे अँगोछे से पोंछ कर बैठ जाते हैं .स्त्री सब सामान अन्दर ले जाती है .भागचन्द अपनी थाली नीचे रख देता है .]
लालो -बैठिये मलिक साहब .[भागो बैठता है बाहर आहट होती है और आवाज आती है -हम अन्दर आ सकते हैं .]शेखूमियाँ हैं ,बुला लें ?
नानक. - ज़रूर .आने दो उन्हें .
*
नटी - महात्मा बुद्ध हमारे देश के बहुत बड़े लोकनायक रहे थे ?
सूत्र - उन्होंने सारे संसार का कल्याण करने के लिये जन्म लिया था .पर कैसी विचित्र बात कि अपनी ही जन्मभूमि में लोग उनके आदर्शों को भुला बैठे .
नटी - संसार का चलन भी अजीब है समय के साथ लोगों की मनोवृत्तियाँ भी बदलने लगती हैं .
सूत्र - बाहरी लोगों ने रास्ता देख लिया था .देश पर बाहरी आक्रमण होने लगे थे . पर...आप कहिये मित्र, आगे की कथा सुनने को उत्सुक हैं हम .
लोकमन -
बर्बर शक औ' हूणों ने क्या कम उत्पात मचाया ,
पर इस स्नेहमयी धरती ने अपना रंग चढाया .
चन्दन सँग पानी की बूँदें मिलकर ऐसी महकीं ,
भरतीय संस्कृति का सबने नाम अनोखा पाया .
जो भी इस धरती पर आये इसका हो रह जाये .
सूत्र. - समन्वय और सह-अस्तित्व की भावना ऐसी थी कि भारत भूमि सभी का आश्रय-स्थल बनती रही .
लोकमन -
फिर कुषाण साम्राज्य देश के लिये अनोखा युग था ,
बौद्ध धर्म का महायान मत जिस छाया में विकसा .
कला और साहित्य सभी में नई दृष्टियाँ जागीं,
इसी भूमि पर रसे-बसे सब, रही न कोई कटुता .
मिश्रण का पञ्चामृत हमको चिर-चैतन्य बनाये .
सदी आठवीं ,फूट आपसी भारत की दुखती रग
बौद्धों की गद्दारी ,बिन कासिम ने साध लिये पग .
दाहर रण मे खेत रहा ,रानी ने जौहर साधा ,
सिन्ध प्रान्त के नगरों पर अब अरबों की बन आई .
काश हमारी भू ने ऐसे पूत न होते जाये .
सूत्र - मित्र लोकमन ,विदेशी लोग सदा हमारी धरती पर आँख गड़ाये रहते थे,और मौका पाते ही आक्रमण कर देते थे .और देखो अपने यहाँ के लोग ,सब जान समझ कर भी चेतते नहीं थे .
लोकमन - अरे अन्धविश्वास ,मूढ़ताओं की बात न पूछो ,
गायों को आगे कर दुश्मन आगे बढ आते थे ,
इनका भुजबल निष्क्रिय और नपुंसक हो जाता था .
'मंदिर तोड़ेंगे 'धमकी सुन पीछे हो जाते थे ,
इसीलिये तो आगे बढ़ बैरी को जीत न पाये .
तुर्कों के हमले ,जन-धन का नाश ,करारी हारें ,
फिर जयचन्दी नीति ,आपसी द्वेष ,फूट के मारे ,
काश पिथौरा,अहं तुम्हारा इतना प्रबल न होता
विष- फन बिन कुचले जो छोड़ा , अंत दंश ही पाया.
नटी - सचमुच . शासकवर्ग में स्वस्थ चिन्तन का अभाव, अपने अहं की तुष्टि और नीति-निर्धारक तत्वों की उपेक्षा .देश के भविष्य की चिन्ता किसी को नहीं .धर्म जब एक वर्ग की बपौती बन जाता है तो समाज की दृष्टि भी अपना सन्तुलन खो बैठती है .
सूत्र - वही हुआ ,हिन्दू और बौद्ध धर्मों में अनगिनती संप्रदाय चल निकले .दृष्टि संकीर्ण हो गई ,जटिलतायें दिन- दिन दूनी बढले लगीं .उन अनर्थों को मनु और याज्ञवल्क्य भी देखते तो चक्कर खा जाते .
लोक - मदिरा ,मुद्रा ,मत्स्य, माँस,बढ़ता व्यभिचार निरंतर ,
तंत्र-मंत्र ,अति गुह्य साधनायें वीभत्स भयंकर ,
खण्ड-खण्ड हो बिखर रही थी जब समाज की सत्ता ,
एक सूत्र मे उसे पिरोने यहाँ पधारे शंकर .
भारत का भूगोल समझ कर साधी चार दिशायें
कोढ़ बन गई थी समाज की बिगडी वर्ण व्यवस्था ,
वञ्चित कर डाला अछूत कह ऐसी बुरी अवस्था .
अधिकारों से हीन, दैन्य से भरा हुआ था जीवन,
प्रखर भक्ति की धाराओं ने उन्हें दे दिया रस्ता .
दलित-अछूत, आर्त- जन प्रभु के शरणागत बन पाये
दृष्य - कावेरी तट
(संध्याकाल ,चिड़ियों की चहचहाहट और पानी के बहने की आवाजें .पृष्ठभूमि में स्थित मंदिर से घंटाध्वनि ,वेदों के उच्चारण के स्वर . तरुप्पन चर्मकार झोपड़ी के बाहर बैठा है.)
तिरुप्पन - नारायण,नारायण .मैं नीचों में भी नीच .मैं चमार हूँ .सब मेरे स्पर्श से बचते हैं .बस मुझे एक दुख है,अपनी नीच जाति के कारण मैं तुम्हारे दर्शन का भी अनधिकारी हो गया हूँ .साल में एक बार जब तुम्हारी सवारी निकलती है तब मेरा मन क्षण भर को तृप्ति पाता है .
'दरशन की प्यासी दोउ अँखियाँ ,
मो सों कब मिलिबो हे राम .
तडप-त़डप मैं रैन बिताऊ,
साँस-साँस में तुम्हें बुलाऊं .
कब तक तरसूँ मोरे प्रभु जी ,
कब पुरिहौ मनकाम .'
[दो स्त्रियाँ आती हैं]
एक -इतने करुण स्वर में कौन गा रहा है ?
दूसरी -वही है तिरुप्पन चमार ...रात -रात भर ऐसे ही गाता रहता है .मुझे तो सुन-सुन कर रोना आता है .
पहली -भगवान से कितना प्यार है इसे ,कितनी पीर है इसके मन में .फिर जाने भगवान इससे दूर कैसे रह पाते है .
[एक पुरुष आता है ]
पुरुष - आधी रात होने को आई ,यहाँ क्या कर रही हो जमुना और मन्दा ?
मन्दा - तिरुप्पन का गाना सुन रही थी .कितना दर्द है इसके स्वरों में .
पुरुष -प्रेम की पीर ऐसी ही होती है .सवर्ण लोग इसे मंदिर में घुसने नहीं देते .
जमुना - उसका प्रेम सच्चा होगा तो तो भगवान स्वयं पसीजेंगे .
मंदा - और क्या .भगवान भक्त की पुकार पर भागे भागे चले आते हैं .मेरा बस चले तो अभी इसे ले जा कर मंदिर में खड़ा कर दूँ .
जमुना - हाँ .और वे लोग मार -मार कर उसकी खाल उधेड़ देंगें .इसने देहरी भी छू ली तो मार ही डालेंगे .
पुरुष - ....तुम लोग घर जाओ .कितना सन्नाटा है और कितना सुनसान है चारों ओर .
मंदा -जाने का मन तो नहीं होता ....
पुरुष - जाओ ,जाओ .मैं सारंग मुनि से बात करूँगा .वे महान और पवित्र वैष्णव हैं .[गाने की आवाज आ रही है ] अरे, वह झोपडी के उधर कौन खडा है ?कौन है वहाँ ?
[एक साधु आगे आता है ]अरे आप , सारंग मुनि .
मुनि [मुँह पर हाथ रख कर चुप रहने का इशारा करता हुआ उसकी तन्मयता में बाधा मत डालो बंधु .बडी शान्ति मिलती है यहाँ .मैं तो रात के 3-4 घंटे यहीं बिताता हूँ .ईश्वर तो इसके हृदय में है ,मेरे- तुम्हारे पास कहाँ ?
पुरुष -हाँ ,मुनि जी ,भगवान तो इसी के पास है .पर ये पूजा करनेवाले पुरोहित कहते हैं ....
मुनि -वे तो धर्म की सौदेबाजी करते हैं .परमात्मा तो अंतर्यामी है ,सबके मन की बात जानता है .ऊपरी आडंबर से प्रभु रहीं रीझते .
पुरुष - और ये जाति धर्म पूजा-अर्चा ?
मुनि - ये सब बेकार की बातें हैं .आत्मा से निकलनेवाली आकुल पुकार ही उसे जगाती है .
जमुना - फिर इसे उनके दर्शन क्यों नहीं हुये ?
मुनि -समय आने पर वह भी होगा .
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दूसरी ओर का दृष्य-- नामदेव और ज्ञानदेव
नाम -मैंने क्या कुछ अनुचित किया ज्ञान देव जी ?
ज्ञान - मित्र नामदेव ,तुमने सचमुच हिम्मत का काम किया .चोखामेला मरे जामवर ढोता था ,उसे तुमने मंदिर में घुसने को प्रेरित किया .पर कहीं वे लोग उसके प्राण ही न ले लें .
नाम -मैंने उसे कहा था कि तुम्हें जान का खतरा है .पर उसने कहा कि आप और ज्ञानेश्वर जी यदि यह उचित समझते हैं तो इसके लिये मैं अपने प्राण जान भी दे दूँगा .
ज्ञान - देखो , वहाँ क्या हो रहा है ? अरे वे लोग चिल्ला रहे हैं .
[आवाजें आती हैं -मारो,मारो ,साले को जिन्दा मत छोडो ....हाय भगवान ,हे राम ,....मरे जानवर ढोता है मंदिर में घुसेगा ....अरे छोडो चोखा मेला को ...तुम लोग भक्त नहीं हो कसाई हो ...हत्यारे हो ...इसे भी मारो ..और बोलेगा ...इस पापी को भी मत छोड़ो ]
नाम -चलो चलों .उसे बचाना है नहीं तो वे उसे मार डालेंगे .
[दोनों चिल्लाते हुये जाते हैं -उसे मारे मत ,मत मारो .]
आवाज -यही हैं नामदेव और ज्ञानेश्वर ,यही इन लोगों को उकसाते हैं .
ज्ञानेश्वर -मैं कहता हूँ रुक जाओ .तुम में से कौन दूध का धोया है ?तुमने जो कर्म किये हैं ,तुम समझते हो उन्हें कोई नहीं जानता ?
नाम -तुम ईश्वर के सच्चे भक्त हो ?क्या तुम्हारे भीतर कलुष नहीं ?याद करो उस कान्हू पात्रा को ,जिसे तुम वेश्या और पतित कहते थे जिसने धर्म छोडने के बजाय अपनी जान दे दी ..
ज्ञान - क्या तुम उस जनाबाई से श्रेष्ठ हो जिसे तुम शूद्र कहते हो ?,जिसे तुमने मार डालने में कोई कसर नहीं छोडी लेकिन भगवान ने बचा लिया ?क्या तुममे इतना सत्य है कि बलिदान दे सको ?किस दम पर तुम चोखा मेला को मारोगे ?
नाम - ये शूद्र क्या इन्सान नहीं हैं ?सच्चे भक्त तो ये हैं ,ये अभय हैं इनका सिर अपने भगवान के सामने झुकेगा ,तुम्हारे सामने नहीं .सच्चा भक्त तो निर्भय होता है ,वह केवल अपने आराध्य के सामने झुकता है .भक्त चोखा, हम तुम्हें नमन करते हैं .
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मुनि - ज्ञानेश्वर ने चोखा मेला को मंदिर में प्रवेश करा दिया .अब तिरुप्पन को कोई नहीं रोक सकता .
[इस बीच तिरुप्पन झोपड़ी में चला गया है जहाँ से संगीत के धीमे स्वर आ रहे हैं --
'मेरो मन चैन न पावे ,तुम बिन ,मेरो मन ....']
भक्त तिरुप्पन , बाहर आओ !
तिरुप्पन - [ बाहर आकर प्रणाम करता है ]कैसे पधारना हुआ ,मुनि जी ?
मुनि -चलो ,भगवान तुम्हें मंदिर में बुला रहे है .लेकिन यह सोच लेना कि अब तुम्हें अन्याय के सामने झुकना नहीं है .प्राण जाने का भी खतरा है ,अच्छी तरह सोच लो .
तिरु -मेरे प्राण उन्हीं में हैं .भगवान के सामने मेरी जान की कोई कीमत नहीं .लेकिन मुनि जी आपको कैसे पता चला कि भगवान ने मुझे बुलाया है ?
मुनि - मेरी आत्मा से परमात्मा ने कहा है कि तिरुप्पन को भीतर ले लाओ .
तिरु -[विभोर होकर ] आज मैं उनके दर्शन करूँगा .साक्षात् अपनी आँखों से देखूँगा .हाँ चल रहा हूँ मैं ....
[दोनों जाते हैं ,कुछ देर में कोलाहल उठता है ..अरे चमार मंदिर में घुस गया ,चल निकल ...मारो,मारो ..मंदिर अपवित्र कर डाला दुष्ट ने ..खींच लाओ बाहर नीच को .और मारो ,जिन्दा मत छोडना
..दो आदमी जाकर लौटते हैं .चुपचाप खड़े हो जाते हैं ,पीछे पीछे सारंग मुनि आते हैं .]
सारंग -क्या हुआ ?उसे खींच कर लाये नहीं ?
[वे चुप खडे हैं ]अब उसे बाहर नहीं निकाल सकते तुम .भक्त ने भगवान को पा लिया है .
एक आदमी -तिरुप्पन मर गया .
सारंग -मरा नहीं वह उन्हीं में समा गया .है तुममें कोई इतना पवित्र,जो अपनी जान की बाज़ी लगा सके ?
तुम लोगों से बहुत ऊँचा था वह .जिन्दगी भर उसे तुम लोगों ने तड़पाया पर अन्त में वह जीत गया .अब क्या देख रहे हो ?जाओ अपना काम करो .
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नटी - युग की विषम स्थितियों को सम करने के लिये महापुरुषों का आविर्भाव होता है .भक्ति जिस लहर ने सारे भारत को सींच दिया ,उसका श्रेय किसे दिया जाय ?
सूत्र - गुरु रामानन्द को .समाज मे दलितों और वंचितों के उन्नयन का पथ उन्हीं ने प्रशस्त किया .क्यों मित्र ,लोक मन ,तुम्हारा क्या विचार है ?
लोक - भक्ति द्राविड ऊपजी ,लाये रामानन्द ,
परकट किया कबीर ने सप्त द्वीप नव- खण्ड .
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दृष्य - बढई लालो का घर . तख्त पर गुरु नानक ,सामने एक थाली रक्खी है ,लालो खड़ा होकर पंखा झल रहा है .उसकी पत्नी में एक प्लेट में रोटी ला कर उनसे लेने का आग्रह कर रही है .गुरु नानक थाली पर हाथ लगा कर रोक रहे हैं .]
नानक - नहीं बीबी ,अब नहीं पहले ही बहुत खा लिया .
लालो -और शर्मिन्दा मत कीजिये गुरु साहब .मुझ गरीब के ये सूखे टिक्कड ,आपसे खाये नहीं जा रहे होंगे .[इसी बीच पकवानों से भरी थाली हाथ में लिये मलिक भागचन्द का प्रवेश ]
भागो - मन तो बहुत दुखी हुआ कि हमारी दावत की अरज नामंजूर कर गुरु साहब ने बिचारे गरीब लालो के घर खाने की ठानी .हमें बराबर लगता रहा कि कहीं गुरु साहब भूखे न रह जायँ,सो यह ले आया .[थाली में परोसने का प्रयास करता है ]ये क्या खिला रहा है गुरु साहब को .सूखे टिक्कड ?अरे हमारे यहाँ से माँग लाता .[लालो और उसकी पत्नी शर्मिन्दा होकर सिर झुका लेते हैं .]
लालो - जो हमारे बस में था हाजिर कर दिया .
नानक -उन पकवानों में मुझे इन्सानों का खून दिखाई दे रहा है .भागो -कैसी बात कर रहे हैं साहब जी ,.इतनी पाकीजगी से मेरी घरवाली ने अपने हाथों से बनाये हैं .हमें तो कुछ नहीं दिख रहा .
नानक - जो औरों को नहीं दिखता हमें दिख जाता है .भाग चंद, देखो लालो की मेहनत का पाक दूध उसके टिक्कडों में रसा बसा है .और तुमने जो इतनी दौलत जोडी है ,वह कहाँ से ?ईमानदारी से कहीं खजाने जुडते हैं .दूसरों की मेहनत से नफ़ा तुम कमाते हो .तुम्हारे अन्न में दूसरों का खून समाया है .जितनी आसानी से ये टिक्कड़ हजम होंगे ,तुम्हारे ये पकवान उतने ही विकार और बीमारियाँ पैदा करेंगे ..
भागो -[कुछ देर सिर झुकाये खडा रहता है ]मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ गुरु साहब .आपने मेरी आँखें खोल दीं .
[इसी बीच लालो एक तसला ले आता है उसकी पत्नी पानी डालती है ,नानक हाथ धोते हैं और लालो के दिये हुये सादे अँगोछे से पोंछ कर बैठ जाते हैं .स्त्री सब सामान अन्दर ले जाती है .भागचन्द अपनी थाली नीचे रख देता है .]
लालो -बैठिये मलिक साहब .[भागो बैठता है बाहर आहट होती है और आवाज आती है -हम अन्दर आ सकते हैं .]शेखूमियाँ हैं ,बुला लें ?
नानक. - ज़रूर .आने दो उन्हें .
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(क्रमशः)