tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post6532581760569409554..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: एक अध्याय और - उपन्यास ('एक थी तरु' )के समापन के बाद !प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-34510204372034896822012-10-08T00:15:39.915-07:002012-10-08T00:15:39.915-07:00लैपटॉप के विघ्न के कारण विलम्ब से टिप्पणी देने के ...लैपटॉप के विघ्न के कारण विलम्ब से टिप्पणी देने के लिये खेद है।<br /><br />प्रिय अनामिका जी,"एक थी तरु" उपन्यास की-अध्यायों के क्रम से<br />इतनी सूक्ष्मता से विशद समीक्षा द्वारा आपने तो कथा का पुनर्पाठ या<br />पुनरावलोकन ही करवा दिया।इस प्रकार प्रतिभा जी के रचना-कौशल के साथ ही आपका वैदुष्य और सशक्त अभिव्यक्ति की क्षमता भी प्रत्यक्ष हो गई।पात्रों के चरित्र और विविध घटना क्रमों पर भी आपने बड़ी सहजता से प्रकाश डाला है।समापन के बाद एक और अध्याय को जोड़कर प्रतिभा जी ने आपकी समीक्षा की महत्ता को तो<br />प्रमाणित कर ही दिया है ,साथ ही आपके श्रमसाध्य सांगोपांग निष्पक्ष लेखन के साथ न्याय भी किया है। सुन्दर भाषा,भाव और सार्थक तथ्यपरक लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें। आपकी लेखनी का साधुवाद!! शकुन्तला बहादुरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-8381929221879770502012-09-30T00:47:18.377-07:002012-09-30T00:47:18.377-07:00अधिक नहीं कहना, मैं प्रसन्न हूँ :)अधिक नहीं कहना, मैं प्रसन्न हूँ :)Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-87073148683673446542012-09-28T20:57:17.283-07:002012-09-28T20:57:17.283-07:00शुभकामनाएं |शुभकामनाएं |रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.com