tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post4221432196006894245..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: कथांश - 11.प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-31064737563915276572014-09-13T09:16:55.461-07:002014-09-13T09:16:55.461-07:00:):)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-74951808578595622142014-08-04T22:53:54.018-07:002014-08-04T22:53:54.018-07:00बहुत ख़ूब!बहुत ख़ूब!चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’https://www.blogger.com/profile/01920903528978970291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-15242034705505404232014-08-02T23:36:04.361-07:002014-08-02T23:36:04.361-07:00माँ, आज इस कड़ी में (बहुत जल्दी 10 के बाद 11वीं कड़ी...माँ, आज इस कड़ी में (बहुत जल्दी 10 के बाद 11वीं कड़ी आ गई) मेरी पुरानी शिकायत दूर हो गई.. या कहिये यही अवसर था मेरी शिकायत दूर करने का.. मैंने पहले कहा था न कि ब्रजेश ने अपनी माँ को समस्त नारी जाति का प्रतिनिधि बताते हुये बहुत सी बातें सोच ली थीं, मगर मीता को कुछ नहीं कहा! <br />आज मीता से मिलकर उसने जो कुछ कहा शायद यही उचित अवसर था उन बातों के लिये! <br />घर का माहौल सामान्य होने लगा है, देखकर अच्छा लग रहा है! मगर देखें आगे आपने क्या छिपा रखा है हमारे लिये! <br />यह कथांश पढते हुये बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, माँ!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-33805183191149486082014-08-02T10:18:05.869-07:002014-08-02T10:18:05.869-07:00रोचक लेखन है आपका , मगर प्रसाद की तरह थोडा सा ही म...रोचक लेखन है आपका , मगर प्रसाद की तरह थोडा सा ही मिल पाता है एक बार में . उत्सुकता बनी हुई है !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-62187006632470112042014-08-02T09:20:20.422-07:002014-08-02T09:20:20.422-07:00ई-मेल से शकुन्तला जी -
''पारिवारिक सम्बन्ध...ई-मेल से शकुन्तला जी -<br />''पारिवारिक सम्बन्धों के परिदृश्यों में आपके चुटीले संवाद प्राण फूँक देते हैं । उनकी स्वाभाविकता मन पर छाप छोड़ जाती है ।<br />घटना-क्रम में पुरुष पात्र की प्रतिक्रिया और उनका कुशल चित्रण एक और पक्ष है -जहाँ पाठक देर तक सोचता ही रह जाता है ।<br />हर पात्र की भाव-भंगिमा कथा का नाटकीय दृश्य प्रस्तुत करने में समर्थ है ।<br />ये बात मैंने "पीला गुलाब " और "एक थी तरु" में भी देखी थी ।''<br />शकुन्तला<br />प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-19663831535001741672014-08-01T23:55:57.222-07:002014-08-01T23:55:57.222-07:00rishto ki kuredan aur kharochen sundarta se nibhay...rishto ki kuredan aur kharochen sundarta se nibhaya hai sab ko. katha pravaah me hai.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-43189047555240820232014-08-01T22:03:42.107-07:002014-08-01T22:03:42.107-07:00इज्जत और प्रतिष्ठा के आगे भला प्रेम की कैसे चलती.....इज्जत और प्रतिष्ठा के आगे भला प्रेम की कैसे चलती...कहाँ इतने भारी भरकम शब्द और कहाँ ढाई आखर वाला...Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.com