tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post1074185631209729685..comments2024-02-08T23:02:04.166-08:00Comments on लालित्यम्: गंगा तीरे !प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-68380489383536530722021-10-26T11:47:34.341-07:002021-10-26T11:47:34.341-07:00बहुत ही सुन्दर बहुत ही सुन्दर Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08514953655269869264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-91761573641821132742011-02-02T22:03:00.751-08:002011-02-02T22:03:00.751-08:00हम्म,
मुझे ना आभार दीजिये कृपया...:(...अभी समय है...हम्म, <br />मुझे ना आभार दीजिये कृपया...:(...अभी समय है न तो...एकदम फ़ुरसत में होती हूँ दिन भर...और पढ़ना मुझे बेहद पसंद है...आप एकदम वही लिखतीं हैं...जो मुझे भाता है...सो आपकी हर पोस्ट पर कुछ न कुछ लिखने को स्वयं ही मन अधीर हो जाता है.....:)<br />एक बात कहना चाहूंगी...कि व्यस्त क्षणों में अगर समय निकाल कर पढ़ती...इतना कहती...तो आपका आभार रख भी लेती..:(.....अभी तो इस आभार की अधिकारी नहीं ही हूँ...:(..अविनाश है...तो बिलकुल उस तक मैं आभार पहुंचा दूँगी....उसे डांटना भी है ...कि उसने इतने दिनों के बाद क्यूँ लिंक दिया...:)<br />इत्ता सारा कहने के लिए क्षमा...:(...नहीं कहती तो आपका आभार थोडा भारी लगता रहता..:)Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-13544532358560338802011-02-02T13:13:37.660-08:002011-02-02T13:13:37.660-08:00ऐसा सजग(प्रबुद्ध भी) पाठक देने के लिए अविनाश के प्...ऐसा सजग(प्रबुद्ध भी) पाठक देने के लिए अविनाश के प्रति अपनी कृतज्ञता किन शब्दों में व्यक्त करूँ !मेरा बहुत-बहुत आभार -पहुँचा देना तरु.<br />अपना लेखन सार्थक लगने लगा है.<br /> आभार तुम्हारा भी !प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5955233793822175648.post-42714520828838628562011-02-02T11:02:23.901-08:002011-02-02T11:02:23.901-08:00आपके शब्द मुग्ध कर गए.....बहुत सुंदर लेख है..बहुत ...आपके शब्द मुग्ध कर गए.....बहुत सुंदर लेख है..बहुत ही सुंदर संजोया है आपने यादों को....न जाने क्यूँ पूरा संस्मरण समाप्त करने के बाद...कुछ समय के लिए ऐसा लगा सब रुक गया....आंखें भर आयीं थीं....:(<br /><br />..अभी हाल के ही महाकुंभ में हरिद्वार गयी थी पूरे ४ दिन ४ रातें............आपका एक एक शब्द उस यात्रा को ताज़ा करता रहा...ईमानदारी से स्वीकार करना चाहूंगी.....इतनी शिद्दत से माँ गंगा को नहीं महसूस कर पायी थी...शायद कोशिश नहीं की थी...और भूल भी चुकी थी सब कुछ... अभी आपके शब्दों में छुपी माँ गंगा को देखा...महसूस किया...और मन भारी है..कि मैंने वहां हरिद्वार में किया तो क्या किया....?? खैर अब बीत गया वो वक़्त भी..फिर जाना होगा तो माँ गंगा से करबद्ध हो क्षमा मांग लूंगी..:(....हाँ जी मगर उस भूमि,जल और वायु ने मेरे मन में जो वैराग्य जगाया था...वो आज भी है....और रोज़ तिनका तिनका बढ़ता जाता है.....ये नव वर्ष श्रीकृष्ण के संग मनाया जब वृंदावन में......तो मैंने भी यही कामना की थी....वहीँ स्थायी वास दे देने की....कैसे भी किसी प्रकार भी।<br /><br />आपके शब्दों में डूब गयी एकदम....<br />आज आपको जितना पढ़ा...उसमे कहीं व्यंग्य..कहीं सरल लेख...कहीं हलकी उदासी तो कहीं...गहरी मुस्कान ही मिली......मुझे शायद इस तरह के संस्मरणों में आपको पढ़ना ज़्यादा अच्छा लगता है....जैसे आप सामने बैठ कर कह रहीं हों.....और मैं लीन होकर सुन रही हूँ.....शब्द जैसे एक एक दृश्य का चित्र उपस्थित कर देते हैं......वो भवन...वो खिड़की...आपका हाथ...और हलकी सी कल कल...लहरों की ध्वनि...और आपके अनदेखे चेहरे पर पूर्ण शान्ति और भक्ति के भाव....सब कुछ मानों मैंने आँखों देखा है अभी अभी......<br /><br />आपके शब्दों ने मन इतना धो दिया है..कि लग रहा है...सब कुछ यहाँ लिखती जाऊं...मगर...रोकती हूँ खुद को......फिर से ये लेख पढूंगी.....:)<br />चलिए शुभ रात्रि.....Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.com