छोटे मियाँ सुभान अल्लाह.
बचपन में मेरा बेटा कुछ ज़्यादा ही अक्लमन्द था..बाल की खाल निकाल देता था. एक बार उसकी एक चप्पल कहीं इधर-उधर हो गई ,वह एक ही चपप्ल पहने खड़ा था.मैने देखा तो कहा अच्छा एक ही पहने हो दूसरी खो गई ? और हमलोग इधऱ-उधर डूंढने लगे.
उसके पापा ने आवाज़ लगाई , 'आओ जल्दी..'
मैने उत्तर दिया,'उसकी एक चप्पल नहीं मिल रही है ,देख रही हूँ ..'
वह सतर्क हुआ बोला,' मम्मी एक तो है दूसरी नहीं मिल रही है.'
मैं खोजने में लगी रही ध्यान नहीं दिया .
देर होती देख उसके पापा चले आए.
'क्या हुआ ?'
'इसकी एक चप्पल नहीं मिल रही .'
वह फिर बोला, ' एक तो पहने हूँ, दूसरी नहीं मिल रही.'
मेरे मुँह से निकला, 'अच्छा..'
नीचे से माली की आवाज़ आई -
'ये एक चप्पल किसकी नीचे गिरी पड़ी है ?'
इन्होंने कहा, ' देखो एक नीचे गिरा दी है .'
उसने फिर स्पष्ट किया,' एक नहीं वह दूसरी है .'
ताज्जुब से उसे देख कर बोले , 'हाँ,हाँ एक नीचे पड़ी है.'
उसने ज़ोर से प्रतिवाद किया, ' एक नहीं दूसरी नीचे पड़ी है '
'हाँ ,हाँ एक तुम्हारे पाँव में और एक नीचे' -मैंने समझाया .
वह क्यों समझता ,खीझता हुआ बोला दूसरीवाली नीचे है ,एक तो ये हैं.
हमलोगों ने आश्चर्य से एक-दूसरे को देखा .
मैंने फिर समझाने की कोशिश की
'हाँ ,हाँ एक तुम पहने हो और एक नीचे '.
वह जोर से बोला -
'एकवाली तो मैं पहने हूँ नीचे दूसरीवाली है .' .
हम दोनों निरुत्तर.
हम समझा रहे हैं,वह हमारी बात कब समझेगा आखिर!
कोई एक बार की बात थोड़े ही .आये दिन कुछ-न-कुछ
दशहरे पर रामलीला के बाद इन लोगों को रावण -दहन दिखाले ले चले.
रावण का पुतला देख कर मुझसे पूछा ,मम्मी ये सच्ची का रावण है
'नहीं.'
'तो इसे जलाते क्यों हैं ?'
मैं चुप रही .
'इसे जलाते क्यों हैं, मम्मी ?'
मैं कहूँ तो क्या कहूँ .
फिर वही, 'क्यों मम्मी?'
अच्छा अभी तो चलो .
लेकिन वह पूछे जायेगा जब तक समाधान नहीं हो जाये,पूछता रहेगा .
हार कर कह दिया, 'अभी चलो बाद में बताऊँगी .'
और कुछ भी सुन लीजिये- बिजली का बिल जमा कराना था. कहीं रख दिया था और मिल नहीं रहा था.
ढूँढ पड़ी थी - बिजली का बिल कहाँ है ?
वह बोला यहाँ है बिजली का बिल .
खुश हो कर हम लोग दौड़े ,'कहाँ ?'
वह ले गया ,मिक्सी चलाने के लिये जहाँ से प्लग को कनेक्ट करते हैं उन सूराखों को दिखा कर बोला,ये है बिजली का बिल.'
बिजली का बिल?
हम दोनों एक-दूसरे का मुँह देख रहे हैं.
अब तक चूहे का बिल देखा होगा ,अब बिजली का भी देख लीजिये - यहाँ रहती है बिजली.
वाह रे भगवान, इन छोटी खोपड़ियों में दूसरों का दिमाग़ चाटने की अक्ल भरने में तुम खूब एक्सपर्ट हो!
*
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-02-2021) को "नयन बहुत मतवाले हैं" (चर्चा अंक-3987) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद, सहमत हूँ.
हटाएंवाकई छोटे मियाँ सुभानअल्लाह ही होते हैं । और फिर उस पर आपका लेखन । मज़ा ही आ जाता है ।
जवाब देंहटाएंप्यारा संस्मरण ।
बहुत बढ़िया..मज़ा आ गया..ये छोटी-छोटी बाल सुलभ बातें हम भुला देते हैं..पर ये भी आनंद का अनुभव करा सकती हैं..वैसे कभी-कभी बड़े मियाँ भी शुभानअल्लाह हो जाते हैं..गुस्ताख़ी माफ करें..आदर सहित जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंअरे, वे तो हैं ही बड़े मियाँ, पर कभी वे भी इस छुटके के आगे हथियार डाल देते होंगे.
हटाएंवाह ! बहुत ही मजेदार प्रसंग, बात में दम तो है छोटे मियां की
जवाब देंहटाएंबच्च्चों की शरारतें जीवन की सबसे खूबसूरत यादें होती हैं..मासूमियत में छिपे उनकी तीक्ष्ण मस्तिष्क का परिचय भी।
जवाब देंहटाएंप्यारे संस्मरण हैं।
सादर।
प्रतिभा दी, बच्चो के मासूम सवालों के जबाब देना के बार मुश्किल होता है। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहर बात पर सवाल,कारण जानने की कोशिश,बच्चों की मासूम शरारतें और मासूम सवाल कभी खत्म नहीं होते। बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार
.... और सार्थक सृजन भी
साधुवाद आदरणीया 🙏
आदरणीया दीदी, पढ़कर बहुत मनोरंजन हुआ। बच्चों की प्रतिभा को पहचानने में अक्सर हम चूक जाते हैं। सादर।
जवाब देंहटाएंबच्चों का जवाब नहीं है, मजेदार रोचक सार्थक किस्से , सादर नमन
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया ।
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